IPEF Pact: भारत, अमेरिका सहित 14 देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ये सभी देश चीन पर निर्भरता घटाकर एक-दूसरे से व्यापार बढ़ाने के लिए साथ आ गए हैं. इंडो पैसेफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) में भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फिजी, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देश सदस्य हैं. इनका ग्लोबल जीडीपी में 40 फीसदी और ग्लोबल ट्रेड में 28 फीसदी हिस्सा है. एक तरफ चीन जहां छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है. वहीं, दूसरी ओर हिंद एवं प्रशांत महासागर में चीन की दखलंदाजी भी बढ़ती जा रही है. इससे निपटने के लिए ये सभी देश साथ आए हैं.  


समझौते का क्या असर होगा 


आईपीईएफ के इस समझौते पर बुधवार को सेन फ्रांसिस्को में हस्ताक्षर किए गए. बैठक में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल भी उपस्थित रहे. इससे वैश्विक व्यापार में चीन का दबदबा कम होगा. चीन के बने उत्पाद दुनियाभर में फैल चुके हैं. कई देश इन पर निर्भर होते जा रहे हैं. चीन को सप्लाई चेन पर इस प्रभुत्व का जमकर फायदा होता है. ये सभी देश मिलकर कई सारे उत्पादों का एक-दूसरे को आयात और निर्यात करेंगे. कोविड-19 से ग्लोबल सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई थी. इस समझौते से आईपीईएफ के देश एक सिस्टम बनाकर ग्लोबल सप्लाई चेन पर से चीन का कंट्रोल कम करेंगे. 


छोटे उद्योगों को पहुंचेगा फायदा 


पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि आईपीईएफ छोटे और मध्यम वर्ग के उद्योगों और कामगारों को फायदा पहुंचाने का काम करेगा. इस समझौते से सुनिश्चित किया जाएगा कि अहम सेक्टर्स के लिए पर्याप्त मात्रा में स्किल वर्कर उपलब्ध रहें. साथ ही उनके स्किल को बेहतर भी किया जाएगा. क्लीन इकोनॉमी और तकनीकी सहयोग बढ़ाने पर भी काम होगा. गोयल ने आईपीईएफ देशों से बायोफ्यूल एलायंस बनाने की मांग भी की.






अलग-थलग पड़ जाएगा चीन 


यदि आईपीईएफ सही दिशा में काम करेगा तो चीन की दादागिरी पर लगाम लगेगी. चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए कई पड़ोसी देशों को अपने चंगुल में फांस लिया है. हाल ही में श्रीलंका दिवालिया होने की कगार पर आ गया था. इसके अलावा वह साउथ चाइना समुद्र में ताकत के दम पर ज्यादातर हिस्से पर कब्जा जमाकर अपने कई पड़ोसियों को तंग भी करता रहा है. इन्हीं सब परिस्थितियों को देखकर आईपीईएफ के जरिए ये 14 देश आपस में सप्लाई चेन बनाकर चीन को अलग-थलग करना चाहते हैं. इससे ग्लोबल ट्रेड में चीन की धौंस खत्म हो सकेगी और सभी देशों को मिलकर कारोबार करने के समान अवसर मिल पाएंगे.


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