(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्या कैश की किल्लत बनाए रखने के पीछे है सरकार की सोची-समझी रणनीति?
नई दिल्लीः देश में करेंसी नोटों की कमी एक महीने बाद भी दूर नहीं हुई है. परेशान लोग इसके लिए मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के इंतजाम पर सवाल खड़े कर रहे हैं. लेकिन अब ये दलील सामने आ रही है कि नए नोटों की कमी कहीं सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा तो नहीं. नोटबंदी के एक महीने बाद भी नये नोट आसानी से मिल नहीं रहे. लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि ये केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है.
दरअसल सरकार की सोच ये है कि बड़े करेंसी नोटों की आसानी से उपलब्धता काले धन का संकट फिर से खड़ा करेगी. इसलिए सरकार की कोशिश है कि बड़ी मात्रा में नये करेंसी नोट फिर से काला धन इकट्ठा करने वालों के पास न पहुंच जाएं. इसके लिए सरकार और रिजर्व बैंक ये कोशिश कर रहे हैं कि नए नोट आसानी से वैसे लोगों तक न पहुंचे जो काले धन के कारोबार से जुड़े हैं. सरकार इसके लिए एक तरफ जहां कैशलेस, डिजिटल ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहित करने में लगी है, वही इस बात की भी सावधानी बरत रही है कि बड़े करेंसी नोट आसानी से उपलब्ध ही न हों.
मोदी सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि रघुराम राजन के रिजर्व बैंक गवर्नर रहने के दौरान ये बात सामने आई थी कि एक हजार रुपये के जितने नोट छापे जाते हैं, उसमें सिर्फ एक-तिहाई सर्कुलेशन में रहते हैं. बाकी दो-तिहाई नोट काले धन के तौर पर जमा कर लिये जाते हैं. पांच सौ के एक-तिहाई नोट भी रिजर्व बैंक से बाहर आते ही काले धन के तौर पर दबा लिए जाते थे.
रिजर्व बैंक के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान देश में एक हजार रुपये के 632 करोड़ और पांच सौ रुपये के 1570 करोड़ नोट मौजूद थे. इस दौरान रिजर्व बैंक ने पांच सौ रुपये के 280 करोड़ नोट खराब होने के कारण बाजार से हटाए, जबकि एक हज़ार रुपये के 62 करोड़ 50 लाख नोट ही खराब होने के कारण हटाने पड़े.
इन आंकड़ों का मतलब ये है कि 500 रुपये के नोट लेनदेन में ज्यादा इस्तेमाल होते हैं, इसलिए वो जल्दी खराब होते हैं. जबकि 1000 रुपये के नोटों का बड़ा हिस्सा काले धन के तौर पर तिजोरियों में रखे होने के कारण वो कम खराब होते हैं. उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों की मानें, तो केंद्र सरकार बड़ी करेंसी नोटों की किल्लत के लिए हो रही आलोचना झेलने को तैयार है. उसकी सोच ये है कि नोटों की किल्लत से डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिलेगा और 500 और 2000 रुपये के नये नोट आसानी से काले धन के तौर पर इकट्ठा नहीं होंगे.