अब बस चंद घंटों का इंतजार है और फिर एक नया इतिहास धरती से लाखों किलोमीटर दूर आसमान में दर्ज हो जाएगा. भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के मून मिशन के तहत आज शाम में लैंडर चांद पर उतरने वाला है. यह कई मायनों में अनोखा मिशन है और इस मिशन में सिर्फ दुनिया भर के वैज्ञानिकों ही नहीं बल्कि तमाम उद्यमियों से लेकर आम लोगों के लिए बड़े काम का ज्ञान छिपा हुआ है.
चांद के लिए भारत का तीसरा अभियान
सबसे पहले चंद्रयान-3 यानी इसरो के इस नए मून मिशन के बारे में कुछ बातें जान लेते हैं. यह भारत का तीसरा मून मिशन है. भारत ने सबसे पहले साल 2008 में चांद का पहला मिशन किया था, जिसे चंद्रयान-1 नाम दिया गया था. उसके बाद 2019 में दूसरा अभियान हुआ और यह भारत का तीसरा चांद अभियान है. पहले अभियान में इसरो ने चांद की परिक्रमा करने वाला ऑर्बिटर भेजा था और उस पूरे मिशन पर 365 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. दूसरा मिशन 978 करोड़ रुपये के खर्च से पूरा हुआ था, लेकिन उसमें पूरी सफलता नहीं मिल पाई थी.
अभी तक कोई नहीं कर पाया ये काम
दरअसल दूसरा मिशन भी काफी हद तक मौजूदा तीसरे मिशन जैसा ही था, जिसमें एक ऑर्बिटर के अलावा एक लैंडर भी है. पिछले मिशन में सॉफ्ट लैंडिंग वाला काम फेल हो गया था और आज इस मिशन में फिर से लैंडिंग की बारी आ गई है. दोनों मिशन इस कारण मुश्किल हैं क्योंकि इसरो चांद के उस हिस्से में उतरने का प्रयास कर रहा है, जहां आज तक अमेरिका, रूस और चीन भी नहीं जा पाए हैं. चांद का एक हिस्सा युगों से अंधकार में डूबा हुआ है, क्योंकि वहां सूरज की रौशनी कभी पहुंच नहीं पाती है और इसी कारण दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चांद के अंधेरे इलाके में पानी मिलने की उम्मीद है. अगर यह अभियान सफल होता है तो चंद्रयान-3 इंसानों के अंतरिक्ष अभियानों का एक अहम पड़ाव बन सकता है.
नासा की तुलना में इतना सस्ता
इसरो के मौजूदा मिशन की लागत की बात करें तो इस पर करीब 615 करोड़ रुपये का खर्च आया है. इसके लॉन्च व्हीकल यानी रॉकेट पर 365 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जबकि लैंडर और रोवर पर 250 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. अब इसकी तुलना नासा से करें तो फिगर अच्छे से समझ आते हैं. लंबे अंतराल के बाद नासा भी चांद का अभियान करने वाला है, जिसे आर्टेमिस मून प्रोग्राम नाम दिया गया है. नासा का यह मिशन 2025 के लिए प्रस्तावित है और उसकी कुल लागत करीब 93 बिलियन डॉलर बैठती है. यानी नासा के मिशन का खर्च करीब 7,69,226 करोड़ रुपये है, जो चंद्रयान-3 की लागत की तुलना में 1,250 गुना है.
बेहद सस्ते हैं प्रस्तावित बड़े मिशन
इसरो का यह मिशन आने वाले समय में अंतरिक्ष में भारत की उपस्थिति के लिहाज से भी अहम है. इसके बाद इसी साल इसरो का सोलर मिशन आदित्य-एल1 प्रस्तावित है, जिसकी लागत करीब 378 करोड़ रुपये है. अगले साल इसरो पहला ह्यूमन स्पेस मिशन गगनयान भेजने वाला है, जिसकी लागत करीब 9,023 करोड़ रुपये है. अगले साल दूसरे मंगलयान की भी तैयारी है. अगले 7-8 सालों में इसरो शुक्र ग्रह के लिए शुक्रयान भी रवाना करने वाला है. कुल मिलाकर यह देखना है कि नासा की तुलना में इसरो हजारों गुने कम पैसे में सफलता से काम को पूरा कर रहा है.
इसरो के मिशन से मिली ये सीख
इसरो के ये अभियान बताते हैं कि अगर आप इरादा कर लें तो बजट कभी भी आपको अपना लक्ष्य पाने से नहीं रोक सकता है. इसरो के पास नासा की तुलना में बहुत मामूली बजट है. नासा जितना एक रॉकेट पर खर्च कर देता है, इसरो का कई साल का बजट उतने का होता है. इसरो ने इसका समाधान निकालने के लिए प्रकृति की ताकत का सहारा लिया यानी धरती और चांद के गुरुत्वाकर्षण बल का इस्तेमाल कर ईंधन और पैसे की बचत की. आप उद्यमी हों या आम आदमी, अपने जीवन के बड़े से बड़े लक्ष्य को पाने के लिए आप भी प्रकृति से ताकत पा सकते हैं.
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