नई दिल्ली: इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने सोमवार को एनसीएलटी को बताया है कि कंपनी के लिए 91 हजार करोड़ का कर्ज चुका पाना मुश्किल है. बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने कहा कि इस परेशानी का हल निकालने के लिए ऐसे निवेशकों की तलाश की जाए जो आर्थिक तौर पर काफी मजबूत हों. वहीं अपनी एक दूसरी रिपोर्ट में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने कहा "वित्तीय और लेन-देन सलाहकारों (एफटीए) के एक रिसर्च पर आधारित प्राथमिक आकलन से संकेत मिलते हैं कि अकेले समूह के स्तर पर समाधान के विकल्प का हल हो पाना कठिन है."


बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने फैसला लिया है कि कंपनी अपने इस कर्ज को चुकाने के लिए आईएलएंडएफएस एजुकेशन, आईएलएंडएफएस टेक्नोलॉजीज, ओएनजीसी त्रिपुरा पावर कंपनी और आईएलएंडएफएस पारादीप रिफाइनरी वॉटर की हिस्सेदारी बेचेगी. इससे पहले भी आईएलएंडएफएस सिक्योरिटीज सर्विसेज और आईएसएसएल सेटलमेंट एंड ट्रांजैक्शन सर्विसेज कंपनियों को बेच चुका है. इसके साथ ही कंपनी लोगों की छंटनी, गेस्ट हाउस की समाप्ति और कार्यालयों को बंद करने जैसे कदम उठा रही है. माना जा रहा है इससे कंपनी को हस साल 100 करोड़ की बचत होगी.


जानिए क्या है आईएलएंडएफएस


आईएलएंडएफएस को नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी यानी एनबीएफसी का दर्जा हासिल है. सन 1987 में सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया और हाउसिंग डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कंपनी ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को कर्ज़ देने के मक़सद से इसे बनाया, और इसे आईएलएंडएफएस नाम दिया गया.


ये एक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी की श्रेणी की सरकारी क्षेत्र वाली कंपनी है. आईएलएंडएफएस दूसरे बैंकों से लोन लेती है. सरकारी क्षेत्र की कंपनी होने के कारण इसकी विश्वसनीयता बहुत अधिक होती है. जिस वजह से इसे किसी तरह की गारंटी नहीं देनी पड़ती है. इसे रेटिंग एजेंसिया ने भी 'एए प्लस' (अति सुरक्षित) का दर्जा दे रखा था.


आसान भाषा में समझिए क्या है आईएलएंडएफएस संकट


पूरे आईएलएंडएफएस ग्रुप पर करीब 91100 करोड़ रुपये का कर्ज है. कंपनी के बॉन्ड्स में देश के करीब सभी म्युचुअल फंड्स, इंश्योरेंस कंपनियों और एनबीएफसी का पैसा लगा हुआ है. आईएलएंडएफएस के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि बाजार में आईएलएंडएफएस के बॉन्ड्स को खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं. दरअसल कंपनी पर 91 हजार करोड़ का कर्ज है, जिसे चुकाने में कंपनी नाकाम रही है. ये पैसे बैंकों के हैं. कंपनी में म्युचुअल फंडों का भी पैसा लगा है और पेंशन और प्रोविडेंड फंड का भी पैसा लगा है. आईएलएंडएफएस पुराने कर्ज चुकाने में बार-बार डिफॉल्ट हो रही है.


कंपनी को अब लोन नहीं मिल सकता और ये बाजार से पैसे जुटाने में भी नाकाम है, क्योंकि इसकी रेटिंग 'जंक स्टेटस' में बदल चुकी है. मसला बड़ा है अगर आईएलएंडएफएस डूबी तो सबकुछ एक झटके में बर्बाद हो जायेगा. कपंनी इसी सदमे से उबरने के लिए लगातार हाथ पैर मार रही है. आईसीआरए ने जैसे ही कंपनी की रेटिंग घटाई थी उसके बाद से निवेशक, बैंकों, म्यूचुअल फंड में घबराहट फैल गई थी जो अब तक बरकरार है. वहीं इक्विटी इंवेस्टर्स में अफरा-तफरी मची है जबकि दूसरे एनबीएफसी में भी उठा पटक मची है.


सितंबर में आईएलएंडएफएस ने बॉन्ड पर 250 करोड़ रुपये के इंटरेस्ट पेमेंट का डिफॉल्ट कर दिया. इससे पूरे एनबीएफसी को लेकर बाजार में निराशा फैल गई थी. इस डिफॉल्ट के बाद कंपनी के सीईओ रमेश बावा सहित पांच डायरेक्टरों ने दिया इस्तीफा भी दे दिया था.


सितंबर महीने में कंपनी ने लिए गए कर्ज़ पर ब्याज की किश्त नहीं चुकाई. कंपनी की मुश्किल ये है कि उसने जिन्हें कर्ज़ दिया है, वो इसे लौटा नहीं पा रहे हैं. कंपनी स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक ऑफ़ इंडिया यानी सिडबी के 1000 करोड़ रुपये के कर्ज़ की किश्त नहीं चुका पाई और सितंबर में इस कंपनी के कर्ज के डिफॉल्ट करने के बाद कंपनी की खराब हालत सामने आई.


25 सितंबर को कंपनी ने एक और कमर्शियल पेपर डिफॉल्ट कर दिया था. इसके बाद कंपनी के लिए अगले 6 महीने तक बाजार में कोई नया कमर्शियल पेपर नहीं लाने का आदेश जारी हुआ. कंपनी ने अकेले सितंबर में ही तीन डिफॉल्ट किए थे. इसके बाद रिजर्व बैंक ने कंपनी की हालत को देखते हुए कंपनी पर ऑडिट शुरू कर दिया था और ग्रुप को बाजार से नए कमर्शियल पेपर्स लेने पर भी रोक लगा दी थी.


इन सब के बाद आईएलएंडएफएस में 6 सदस्यों का नया बोर्ड बनया गया. जिसका अध्यक्ष उदय कोटक को बनाया गया. बोर्ड के सदस्यों में विनीत नायर, जी एन वाजपेयी, आईएएस मालिनी शंकर, आईसीआईसीआई बैंक के जी सी चतुर्वेदी और नंद किशोर भी शामिल थे. जिसके बाद से ही बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ये कमेटी कंपनी को इस संकट से बाहर निकालने के लिए कड़े कदम उठा रही है.