Inflation Impacts Saving: खाद्य वस्तुओं, पेट्रोल डीजल के दामों में बढ़ोतरी के चलते मार्च महीने में खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation ) 6.95 फीसदी पर जा पहुंचा है जो कि बीते 18 महीने का उच्चतम स्तर है.  कुछ यही हाल थोक मुल्य आधारित महंगाई दर के आंकड़े का भी है जो मार्च में 14.55 फीसदी रहा है. और आपको बता दें बीते 12 महीने से थोक मुल्य आधारित महंगाई दर दहाई के आंकड़े से ऊपर बना हुआ है. 


आरबीआई के टोलरेंस लिमिट से भी ज्यादा है महंगाई 
आरबीआई खुदरा महंगाई दर को आधार मानता है और खुदरा महंगाई दर 6.95 फीसदी पर जा पहुंचा है जो आरबीआई के ऊपरी लिमिट 6 फीसदी से ज्यादा है. महंगाई दर से राहत मिलने की सूरत नजर भी नहीं आ रही है. आरबीआई ने हाल ही में पेश किए गए मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान 2022-23 के लिए 5.7 फीसदी महंगाई दर रहने का अनुमान जताया है. जबकि 2021-22 में आरबीआई ने 4.5 फीसदी महंगाई दर का अनुमान जताया था. लेकिन लंबे समय से खाने के तेल के दामों में उछाल और फिर रूस यूक्रेन युद्ध से सप्लाई चेन में दिक्कतों के चलते पेट्रोल डीजल से लेकर नैचुरल गैस समेत कई कमोडिटी की सप्लाई बाधित हुई है जिसके चलते महंगाई बढ़ी है.  


महंगाई डाल रही जेब पर डाका
महंगे ईंधन के चलते पेट्रोल डीजल गाड़ी में डलवाने के लिए लोगों को ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. सीएनजी से लेकर खाना पकाने वाले गैस पीएनजी के दामों में 50 फीसदी तक का इजाफा बीते छह महीने में हुआ है. खाने के तेल खासतौर से सरसों तेल अभी भी 200 रुपये प्रति किलो में मिल रहा है. गेंहू के दाम बढ़े हैं जिसके चलते आटा भी महंगा हो रहा है. एफएमसीजी कंपनियां ने कच्चे माल के दामों में बढ़ोतरी के चलते साबुन, डिटर्जेंट और शैम्पू के दाम बढ़ा दिए हैं तो कंज्यूमर ड्यूरेबल्स कंपनियों ने कमोडिटी के दामों में इजाफे के चलते एसी, फ्रिज से लेकर अपने प्रोडक्ट्स के दाम दिए हैं. ऑटोमोबाइल कंपनियां भी इसी चलते कार, एसयूवी और टूव्हीलर के दाम बढ़ा चुकी हैं. इसका नुकसान अर्थव्यवस्था को होगा. कंपनियों को कहना है कि जितनी लागत बढ़ी है उतना उन्होंने दाम नहीं बढ़ाये. इसका मतलब ये हुआ कि कंपनियों का मार्जिन प्रभावित हो रहा है. उन्हें कम मुनाफा होगा तो वे नया निवेश नहीं करेंगे साथ ही कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी भी कम होगी. इसका मतलब साफ है कि बढ़ती महंगाई का असर लोगों की आय पर, आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है. नाकारात्मक असर ये होगा कि महंगी कीमत के चलते लोग इन चीजों की खरीदारी को रोक भी सकते हैं. 


कैसे डाल रही महंगाई आपके जेब पर असर 
मान लिजिए इस कमरतोड़ महंगाई के दौर में अगर किसी का वेतन बढ़ भी गया तो वो उसके पास खुश होने की कोई वजह नहीं है. क्योंकि जो अतिरिक्त आमदनी बढ़ी उसे महंगाई डायन निगल जा रही है. और जिनकी आमदनी नहीं बढ़ी तो उन्हें उस वस्तु को खरीदने के लिए या तो अपने बचत से पैसे निकाल कर खर्च करना पड़ा रहा है. या जितनी मात्रा में पहले वो उपभोग किया करता था अब कम उपभोग कर रहा है. इसे इस प्रकार समझिए. आप बैंकों के फिकस्ड डिपॉजिट में निवेश करते हैं. जो भारत में आम लोगों के लिए निवेश का बेहतर जरिया है. कई बार ज्यादा महंगाई दर के चलते ऐसे मौके भी आते हैं जब वे इन एफडी पर कमाने की बजाये आप पैसे गवां रहे होते हैं. महंगाई बहुत चालाकी के साथ आपके सेविंग पर असर डालती है. उदाहरण के लिए अगर आप 1000 रुपये की सेविंग पर 5 फीसदी ब्याज हासिल कर रहे हैं लेकिन खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी  है तो आपको साल बाद 1050 रुपये मिलेंगे. लेकिन आपको महंगाई के चलते 1070 रुपये खर्च करने पड़ेंगे. यानि उसी सामान को खरीदने के लिए 20 रुपये जेब से लगाना होगा. जो जाहिर है आप दूसरे बचत के साधनों से पूरा करेंगे. 


महंगाई से घटती है खरीद क्षमता
कमरतोड़ महंगाई के चलते लोगों की खरीद क्षमता घटती है. महंगाई के दौर में भले ही इनकम ज्यादा भी तो भी हकीकत में नहीं होती. महंगाई के साथ खरीद क्षमता घटती जाती है. क्योंकि उसी सामान को खरीदने के लिए पहले के मुकाबले आपको ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे. दूसरे गैरजरुरी खर्चों में कटौती करनी पड़ती है. बचत की क्षमता घटती है जिसका असर बचत योजनाओं पर पड़ता है और व्यक्ति कोई नया निवेश नहीं कर पाता है. 


महंगाई से महंगा हो रहा है कर्ज 
खुदरा महंगाई दर 6.95 फीसदी पर जा पहुंचा है. जो आरबीआई द्वारा तय सीमा 6 फीसदी से ज्यादा है. जिस प्रकार महंगाई बढ़ रही है उसके बाद ब्याज दरों महंगा होने लगा है. एसबीआई से लेकर एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और कोटक महिंद्रा बैंक ने कर्ज महंगा कर दिया है. यानि जो लोग ईएमआई चुका रहे हैं उन्हें पहले के मुकाबले ज्यादा ईएमआई चुकाना पड़ सकता है.  


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