Anil Agarwal: जानिए कैसे लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी लिस्ट कराने वाले पहले भारतीय बने अनिल अग्रवाल!
Vedanta Group: अनिल अग्रवाल सेमीकंडक्टर चिप की मैन्युफैकचरिंग में कदम रखने जा रहे हैं. जिससे ऑटोमोबाइल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की चिप की जरुरत को पूरा किया जा सके
Anil Agarawal: मेटल्स, माइनिंग और पेट्रोलियम सेक्टर से जुड़ी कंपनी वेदांता समूह ( Vedanta Group) के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ( Anil Agrawal) फिर से इन दिनों चर्चा में है. वेदांता समूह 1.54 लाख करोड़ रुपये की लागत से ताईवान की फॉक्सकॉन ( Foxconn) के साथ मिलकर गुजरात में सेमीकंडक्टर चिप ( Semiconductor Chip) मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने जा रही है. अनिल अग्रवाल की वेदांता ग्रुप ओडिशा (Odisha) में भी 25,000 करोड़ रुपये निवेश करने जा रही है. ओडिशा में कंपनी अब तक 80,000 करोड़ रुपये का निवेश कर चुकी है. इससे एक बात तो साफ है कि अनिल अग्रवाल के पास पैसे की कमी नहीं है और निवेश को लेकर वे आतुर नजर आते हैं. अनिल अग्रवाल के जीवन की कहानी और मेटल मैगनेट बनने तक का उनका सफर बहुत ही रोचक है जो किसी को भी प्रेरित कर सकता है.
मुंबई से की शुरुआत
महज 19 साल की उम्र में अनिल अग्रवाल पटना शहर में अपने घर-द्वार, परिवार को छोड़कर सपनों की नगरी मुंबई आ गए. तब उनके पास एक टिफिन बॉक्स और बेडिंग के अलावा कुछ नहीं था. मुंबई में 21 रुपये के किराये वाले कमरे में रहे जिसे सात अन्य लोगों के साथ शेयर करना पड़ता था. उन्होंने 8*9 फुट के एरिया के बराबर ऑफिस खोला. जहां से वे स्क्रैप मेटल खरीदने बेचने लगे. कुछ ही दशकों में मायानगरी ने उनकी तकदीर ही बदकर रख दी. उन्होंने मुंबई में दिवालिया के कगार पर खड़ी कॉपर कंपनी शमशेर स्टर्लिंग कॉरपोरेशन को सबसे पहले खरीदा. 1970 में इस कंपनी को खरीदने के लिए उन्होंने 16 लाख रुपये जुटाये. जो उस समय बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. अपने दोस्तों, परिवार और खुद के द्वारा की गई सेविंग में जमा पैसे के जरिए उन्होंने इस कंपनी को खरीदा. हालांकि इसके बावजूद उन्होंने स्क्रैप मेटल में ट्रेडिंग के कारोबार को अगले 10 सालों तक जारी रखा जो उनका पारिवारिक व्यवसाय हुआ करता था. बिजनेस स्कूल को छोड़ दिजिए वे कभी कॉलेज भी नहीं गए लेकिन एक बड़े उद्योगपति बनने की राहत पर वे चल पड़े थे.
1988 में लाये स्टरलाइट इंडस्ट्रीज का आईपीओ
1986 में उन्होंने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (Sterlite Industries) बनाई जो देश देश की सबसे बड़ी कॉपर प्रोड्यूसर कंपनी थी. 1988 में कंपनी अपना आईपीओ भी लेकर आई और स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट कराया. आईपीओ के जरिए जुटाये गए रकम से कॉपर टेलीफोन केबल्स प्लांट की स्थापना की. 7 वर्षों के बाद अनिल अग्रवाल ने घाटे में चल रही बीमार कंपनी मद्रास एल्युमिनियम में 55 करोड़ रुपये में 83 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली. अनिल अग्रवाल की सबसे बड़ी खासियत थी कि वे वैसी कंपनियों को खरीदते थे जो वित्तीय संकट से जूझ रही होती थी और उसका कायाकल्प कर वे उससे बड़ा रेवेन्यू हासिल करते थे. तस्मानिया (Tasmania) में उन्होंने केवल 2.5 मिलियन डॉलर में माइन्स खरीदी और उससे 100 मिलियन डॉलर सलाना रेवेन्यू हासिल करने लगे. 2002 में अनिल अग्रवाल ने सरकार द्वारा किए गए विनिवेश के बाद हिंदुस्तान जिंक ( Hindustan Zinc) को खरीदा. तब कहा जा रहा था कि कंपनी के पास केवल 5 सालों के लिए रिजर्व है और उसकी जिंक मैन्युफैकचरिंग कैपेसिटी 1.5 लाख टन सलाना थी. लेकिन अब कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता 10 लाख टन की हो गई है और अनिल अग्रवाल ने हाल ही में कहा कि कंपनी के पास अगले 40 वर्षों का रिजर्व है.
LSE पर कंपनी लिस्ट कराने वाले पहले भारतीय
अनिल अग्रवाल मुंबई छोड़ अपने परिवार के साथ लंदन शिफ्ट हो गए. 2003 में उन्होंने अपनी कंपनी वेदांता रिसोर्सेज ( Vedanta Resources) की लंदन स्टॉक एक्सचेंज ( London Stock Exchange) पर लिस्टिंग कराई. और वे पहले भारतीय थे जिसकी कंपनी लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हुई थी. अगले एक दशक में अग्रवाल ने अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दूसरे रीजन में कई माइन्स को खरीदा. माइनिंग और मेटल्स के बाद अनिल अग्रवाल ने पेट्रोलियम सेक्टर में कदम रखा. उन्होंने 9 अरब डॉलर में देश की निजी क्षेत्र की ऑयल कंपनी केयर्न एनर्जी ( Cairn Energy) को खरीदा. 2012 में वेदांता रिसोर्सेज पीएलसी ने सीसा गोवा, वेदांता एल्युमिनियम और मद्रास एल्युमिनियम का आपस में विलय कर सीसा स्टरलाइट नाम से नई कंपनी बनाई. जिसकी वैल्यू 20 अरब डॉलर थी.
अब बनायेंगे सेमीकंडक्टर चिप
वेदांता की लिस्टिंग के 15 सालों के बाद अनिल अग्रवाल ने वेदांता को लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर से डिलिस्ट करा दिया और उसे प्राइवेट कंपनी बना दिया. अब अनिल अग्रवाल सेमीकंडक्टर चिप की मैन्युफैकचरिंग में कदम रखने जा रहे हैं. जिससे ऑटोमोबाइल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की चिप की जरुरत को पूरा किया जा सके और चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके.
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