कुशल और अकुशल मजदूरों की कमी से रियल एस्टेट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, सीमेंट और शहरी विकास से जुड़ी परियोजनाओं में कामगारों की कमी हो गई है. ज्यादातर परियोजनाएं लटकी हुई हैं और कंपनियां इन्हें पूरा करने में लगी हैं. लेकिन इस हिसाब से मजदूर नहीं मिल रहे हैं. लेकिन इसका असर यह हुआ कि इन सेक्टरों में काम करने वाले कामगारों की मजदूरी बढ़ गई है.
कुशल मजदूरों की ज्यादा कमी
अमूमन इन सेक्टरों में दैनिक मजदूरी 450 से 500 रुपये होती है लेकिन अब यह बढ़ कर 500 से 600 रुपये के बीच हो गई है. मजदूरी में 15 से 20 फीसदी तक इजाफा हुआ है. मजदूरों की उपलब्धता भी प्री-कोविड लेवल के 70 फीसदी तक ही है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर में सबसे ज्यादा ब्लू-कॉलर कामगार काम करते हैं. ज्यादातर लोग असंगठित सेक्टर में काम करते हैं. कंस्ट्रक्शन सेक्टर की कंपनियों के आला अधिकारियों के मुताबिक स्किल्ड वर्कर की काफी ज्यादा कमी है.
घर लौटे मजदूरों के न आने से समस्या बढ़ी
दरअसल कोविड-19 के दौरान में लॉकडाउन के दिनों में कई कामगार अपने घरों को लौट गए थे. उनकी वापसी हुई लेकिन यह रफ्तार अभी धीमी है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर में इस वक्त फीटर, वेल्डर, इलेक्ट्रिशयन और कारपेंटर जैसे कुशल कामगारों की कमी दिख रही है. डालमिया सीमेंट के प्रवक्ता के मुताबिक उनकी कंपनी में काम करने वाले कामगारों में ज्यादातर संख्या प्रवासी कामगारों की है. अब जब वे लौट रहे हैं तो उन्हें ज्यादा वेतन पर रखा जा रहा है. वर्कर यूनियन से समझौते के मुताबिक उनका पारिश्रमिक बढ़ाया गया है. लिहाजा मजदूरों की भले ही कमी हो रही है लेकिन उनकी मजदूरी बढ़ रही है.
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