नई दिल्लीः फंसे कर्ज यानी एनपीए की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंकों की घाटे में चल रही शाखाओं को बंद कर दिया जाए. वित्त मंत्रालय (फाइनेंस मिनिस्ट्री) ने ऐसा सुझाव दिया है. वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मिनिस्ट्री ने कहा है कि बड़े घाटे की दिक्कतों का सामना कर रही बैंकों की शाखाओं को बंद कर देना ही अच्छा समाधान है.
क्यों कहा फाइनेंस मिनिस्ट्री ने ऐसा
मंत्रालय ने बैंकों से कहा है कि लॉस दे रही बैंक शाखाओं को चलाते रहने से बैंक के बैलेंस शीट पर बुरा असर पड़ता है. बैंकों की वित्तीय हालात सुधारने और इनके ऑपरेशनल कॉस्ट को कम करने के लिए इस तरह की छोटी बचत पर ध्यान देना जरूरी हो चला है.
क्या दिया गया है समाधान
वित्त मंत्रालय का कहना है कि अगर सरकारी बैंक की शाखाओं को मुनाफा कमाना है तो इसके लिए प्रोफेशनल तरीके से बैंकिंग सेवाओं को देना होगा. वहीं संसाधनों के मैक्सिमम उपयोग के जरिए और एडमिनिस्ट्रेटिव कॉस्ट में कटौती करके बैंक अपनी टोटल कॉस्ट को घटा सकते हैं. वर्ना ऐसी लॉस मेकिंग बैंक ब्रांचेज को बंद करने के अलावा कोई और उपाय नहीं रह जाएगा. सरकारी बैंकों को दबावग्रस्त कर्जों की समस्या से जूझ रही और घाटे में जा रही शाखाओं को बंद करना पड़ेगा.
एसबीआई-पीएनबी पहले ही कर चुके हैं शाखाएं बंद
गौरतलब है कि भारत सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) और एक प्रमुख बैंक पीएनबी (पंजाब नेशनल बैंक) पहले ही घाटे में चल रही अपनी बैंक ब्रांचेज को बंद कर चुके हैं. (कॉस्ट कटिंग) को वरीयता देते हुए इंडियन ओवरसीज बैंक भी देश में अपने रीजनल ऑफिसेज की संख्या घटाकर 49 करने वाला है जो कि पहले 59 थीं.
क्या है वित्त मंत्रालय के सुझाव
- फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंकों से कुछ गैर जरूरी शाखाओं को बंद करने और एकीकरण पर विचार करने को कहा है जो इंटरनेशनल ब्रांचेज के संदर्भ में भी लागू हो सकता है.
- हालांकि वित्त मंत्रालय पहले ही कह चुका है कि विदेश में किसी एक देश में ही कई सारे भारतीय बैंकों के होने की जरूरत नहीं है.
- ज्यादा से ज्यादा प्रॉफिट और रिटर्न वाले बाजारों पर फोकस करने के लिए मिनिस्ट्री ने सरकारी बैंकों की कुछ ब्रांचेज को बंद करने या बेचने पर भी विचार करने पर जोर दिया है.