लॉकडाउन की वजह से लोगों की घटती आय का असर सीधे बैंकों के पसर्नल लोन सेगमेंट पर पड़ा है. दरअसल पर्सनल लोन बैंकों के लोन बिजनेस को सबसे बड़ा सहारा देते हैं. साथ ही भारत जैसी उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था की सेहत का हाल भी इससे पता चलता है.


घट गई पर्सनल लोन लेने वालों की तादाद


आरबीई के हालिया आंकड़ों के मुताबिक पर्सनल लोन के  के तहत 27 मार्च तक 25.53 लाख करोड़ रुपये लोन दिए गए थे लेकिन इसमें लॉकडाउन के पहले महीने में 2.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 24 अप्रैल को घट कर 24.9 लाख करोड़ रुपये तक आ गया. यह गिरावट 62,861 करोड़ रुपये की थी. जबकि 2019-20 के दौरान कर्ज में 15 फीसदी यानी 3.32 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी. पिछले छह साल से पर्सनल लोन कैटेगरी बैंकों के लोन बिजनेस को बढ़ावा देने वाला सबसे बड़ा सेगमेंट रहा है. पर्सनल लोन सेगमेंट में होम लोन, व्हिकल लोन, क्रेडिट कार्ड, कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन और एजुकेशन लोन आते हैं.


लोन के लिए सरकार का प्रोत्साहन बेअसर


आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है प्राथमिकता वाले सेक्टर में भी लोन की मांग में कमी आई है.जबकि सरकार बैंकों को लोन देने के लिए लगातार प्रोत्साहन दे रही है. सरकार ने इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज दिया है, इसमें से 3 लाख करोड़ रुपये अकेले एमएसएमई सेक्टर के लिए है.  लेकिन व्यक्तिगत आय में कमी की वजह से मांग में भी भारी गिरावट आई है. पर्सनल लोन में कमी होने के पीछे यही वजह है. जब तक रोजगार के मोर्चे पर बेहतरी नहीं दिखेगी, बिजनेस सेंटिमेंट सुधरने की गुंजाइश नहीं है. नई भर्तियों में तेजी के बगैर उपभोक्ता और लोन मार्केट की स्थिति में बेहतरी मुश्किल है. फिलहाल इन मोर्चों पर अब तक सफलता मिलती नहीं दिखती. राहत पैकेजों का असर दिखने में अभी लंबा वक्त लग सकता है.