रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की महत्वपूर्ण बैठक जारी है. तीन दिनों की यह बैठक शुक्रवार 8 दिसंबर को समाप्त होगी और उसके बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ब्याज दर पर लिए गए फैसलों की जानकारी देंगे. रिजर्व बैंक की इस बैठक पर बाजार के विश्लेषकों और विशेषज्ञों के साथ-साथ आम लोगों की भी निगाहें लगी हुई हैं.
रिजर्व बैंक की इस एमपीसी के बारे में लगभग हर किसी की राय है कि रेपो रेट के मामले में कोई बदलाव नहीं होने वाला है. रिजर्व बैंक ने महीनों से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. रिजर्व बैंक ने प्रमुख नीतिगत दर यानी रेपो रेट में आखिरी बार फरवरी 2023 में बदलाव किया था. तब रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को बढ़ाकर 6.50 फीसदी कर दिया था.
फरवरी से नहीं हुआ कोई बदलाव
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति हर दो महीने पर ब्याज दरों की समीक्षा करती है. फरवरी 2023 में हुई बैठक पिछले वित्त वर्ष की आखिरी एमपीसी बैठक थी. उसके बाद चालू वित्त वर्ष में अप्रैल, जून, अगस्त और अक्टूबर में एमपीसी की बैठकें हो चुकी हैं. पिछली चारों बैठकों में रेपो रेट को यथावत रखा गया है. अभी जो संकेत मिल रहे हैं, उससे पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक के रुख में शायद ही कोई बदलाव हो. मतलब न सिर्फ दिसंबर की चल रही मौजूदा बैठक, बल्कि इसक बाद फरवरी 2024 में होने वाली इस वित्त वर्ष की आखिरी बैठक में भी रेपो रेट स्थिर रहने वाला है.
इस तरह से दनादन बढ़ी रेपो रेट
रिजर्व बैंक महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट को बढ़ाता है. महंगाई के बेकाबू हो जाने के बाद सेंट्रल बैंक ने मई 2022 में एमपीसी की आपातकालीन बैठक बुलाई थी और लंबे समय के बाद रेपो रेट को बढ़ाया था. उसके बाद लगातार बैठकों में रेपो रेट में बढ़ोतरी होती गई. मई 2022 से फरवरी 2023 के दौरान 6 बैठकों में रेपो रेट को 2.50 फीसदी बढ़ाया गया. जैसे-जैसे रेपो रेट बढ़ती गई, बैंकों के कर्ज भी महंगे होते गए. दूसरी ओर लोगों को एफडी पर भी ज्यादा ब्याज मिलने लग गया.
अब सिर्फ कटौती की ही बची गुंजाइश
रेपो रेट के मोर्चे पर पिछली कई बैठकों से इस बात की उम्मीद की जाती रही कि अब रेपो रेट को कम करने यानी सस्ते ब्याज का दौर शुरू हो सकता है. हालांकि हर बार महंगाई ने इन उम्मीदों को खारिज किया. हालांकि एक बात तो पूरी तरह से साफ हो गई कि अब रेपो रेट अपनी उच्चतम स्तर को पा चुकी है और अब उसमें सिर्फ डाउनसाइड बदलाव संभव है. यानी अब जब भी हो, रेपो रेट में सिर्फ कटौती की ही गुंजाइश बन रही है.
एफडी पर कम होने लग गया ब्याज
रेपो रेट कम होने का स्वाभाविक असर होता है कि ब्याज कम होने लग जाते हैं. इससे लोगों को घर खरीदने के लिए होम लोन से लेकर कार खरीदने के लिए कार लोन तक कम ब्याज पर मिल जाता है. दूसरी ओर घाटा ये होता है कि एफडी पर ब्याज कम होने लग जाता है. अभी रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को घटाना शुरू नहीं किया है, लेकिन लगभग सारे बैंकों ने एफडी के ब्याज को घटाना शुरू कर दिया है. अक्टूबर में यस बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा आदि ने इस क्रम की शुरुआत की. उसके बाद कई बैंक एफडी पर ब्याज को कम कर चुके हैं.
सेविंग अकाउंट पर बस इतना ब्याज
एफडी पर कम होते ब्याज के बीच लोगों के मन में सेविंग अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज को लेकर सवाल उठ रहे हैं. स्वाभाविक सवाल ये उठता है कि क्या एफडी की तरह बैंक सेविंग अकाउंट पर भी ब्याज को कम करने लगेंगे, जो कि पहले से ही बहुत कम है? सेविंग अकाउंट पर चुनिंदा बैंकों को छोड़ दें तो 4 फीसदी से भी कम ब्याज न्यू स्टैंडर्ड बन चुका है. प्रमुख बैंक जमाने से 2.70 से 3 फीसदी तक का ब्याज ही लोगों को दे रहे हैं.
इस बात ने बढ़ाई रिजर्व बैंक की चिंता
बैंकों के बचत खाते पर मिल रहे ब्याज की दर को देखें तो यह रेपो रेट के आधे से भी कम है. इससे सबसे ज्यादा घाटा कम कमाई वाले उन लोगों को होता है, जो छोटी-छोटी बचत कर पाते हैं और सेविंग अकाउंट में पैसे रखते हैं. इस बात ने रिजर्व बैंक की भी चिंता बढ़ाई है. सेंट्रल बैंक पहले भी कमर्शियल बैंकों को इस बात को लेकर आगाह कर चुका है कि वे सेविंग अकाउंट पर बेहद कम ब्याज के बारे में विचार करें. ऐसे में इस बात की उम्मीद की जा रही है कि सेविंग अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज को लेकर इस बार की एमपीसी में कुछ ठोस निर्णय लिया जा सकता है.
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