Mental Health: ध्यान न रखने से खराब होने लगता है दिमाग, बीमा भले हो पर काम सिर्फ 'ओपीडी कवर' ही आएगा
कोरोना वासरस से प्रभावित लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बहुत हद तक प्रभावित हुआ है. इसके महंगे इलाज पर होने वाले खर्च के लिए ओपीडी कवर महत्वपूण है.
Mental Health: पिछले महीने Deloitte के एक सर्वे में यह बात सामने आई कि भारत में मानसिक समस्याओं से जितने लोग जूझ रहे हैं, वह विश्व का 15 प्रतिशत है. कोरोना वायरस से प्रभावित होने वाले ज्यादातर व्यक्ति किसी न किसी तरह की मानसिक परेशानी से त्रस्त हैं. इसका असर, उनके कामकाज, शारीरिक स्वास्य और व्यवहार पर देखा जा रहा है. Deloitte के सर्वे में शामिल लगभग 47 प्रतिशत प्रोफेशनल्स ने कहा कि वे ऑफिस जुड़े स्ट्रेस की वजह से मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं.
आप सोच रहे होंगे कि आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस तो है ही, फिर मेंटल हेल्थ के लिए टेंशन लेने की क्या जरूरत है. दरअसल, हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे को बढ़ाकर और मजबूत बनाने के लिए ओपीडी कवरेज बेहद जरूरी हो जाता है. खासतौर पर तब, जब आप मानसिक तनाव या किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी का सामना कर रहे हैं. ऐसे में व्यक्ति को ऐसे इंश्योरेंस प्लान का चुनाव करना चाहिए जिसमें पर्याप्त ओपीडी कवरेज हो, क्योंकि किसी भी प्रकार की मानसिक बीमारी के लिए लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता होती है.
क्यों जरूरी है OPD Cover?
जनरल इंश्योरेंस कंपनियां या हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां हॉस्पिटलाइजेशन और डे-केयर प्रोसीजर्स को हेल्थ इंश्योरेंस कवर में शामिल करती हैं. हालांकि, मानसिक परेशानियों के मामले में कोई व्यक्ति डॉक्टर से मिलता है और थेरेपी लेता है. यहां थेरेपी की फीस और डॉक्टर की फीस को कवर करने के लिए ओपीडी कवर होना जरूरी है.
क्या कहता है मेंटल हेल्थकेयर एक्ट?
मेंटल हेल्थकेयर एक्ट (Mental Healthcare Act) 2017 में पारित किया गया था. इस अधिनियम के पारित होने के बाद भारतीय विनियामक एवं विकास प्राधिकरण यानी IRDAI ने बीमा कंपनियों से कहा कि वे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में कोई भेदभाव न करें.
क्या आपको मिलेगा कवर?
पॉलिसीबाजार डॉट कॉम में हेड हेल्थ एंड ट्रैवल इंश्योरेंस अमित छाबड़ा कहते हैं कि सिर्फ इसलिए कि बीमाकर्ताओं के लिए मानसिक स्थितियों के लिए कवरेज प्रदान करना अनिवार्य है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे प्रत्येक व्यक्ति को कवर करेंगे. किसी व्यक्ति को कवर मिलता है या नहीं यह बीमा कंपनियों पर निर्भर करता है. किसी व्यक्ति की अगर पहले से ही गंभीर स्थिति है, या उसकी तेजी से तबियत बिगड़ रही है, तो उसे कवरेज से वंचित किया जा सकता है.
छाबड़ा कहते हैं कि पहले से मौजूद सभी बीमारियों का खुलासा किया जाने के बाद ही बीमाकर्ता अपनी सहमति देता है. इसके बाद यह प्रस्ताव को या तो स्वीकार या अस्वीकार कर देगा. अगर वह स्वीकार करता है तो वह पहले से मौजूद बीमारी को स्थायी रूप से न कवर करने के साथ ऐसा कर सकता है. या यह वैटिंग पीरियड के बाद पहले से मौजूद बीमारी को कवर कर सकता है, वेटिंग पीरियड 2 से 4 वर्ष तक अलग-अलग हो सकता है.
कितना है प्रीमियम?
अगर हम 30 साल के नॉन-स्मोकर्स व्यक्ति के लिए 10 लाख रुपये के सम इंश्योर्ड का प्रीमियम देखें तो अलग-अलग कंपनियां अपनी अंडरराइटिंग पॉलिसी के हिसाब से ओपीडी कवर सुविधा के लिए अलग-अलग प्रीमियम लेती हैं. आदित्य बिड़ला के एक्टिव एश्योर डायमंड पॉलिसी का सालाना प्रीमियम जीएसटी सहित 8,625 रुपये है और ओपीडी कवर आप अलग से राइडर के तौर पर इसके साथ ले सकते हैं. मणिपाल सिग्ना की प्राइम-एडवांटेज पॉलिसी का प्रीमियम 12,513 रुपये सालाना है और इसमें ओपीडी कवर शामिल है. इसके अलावा, निवा बूपा की हेल्थ रीएश्योर पॉलिसी का वार्षिक प्रीमियम 10,852 रुपये है और ओपीडी कवर ऑप्शनल राइडर के तौर पर लिया जा सकता है. बजाज आलियांज की इंडिविजुअल हेल्थ गार्ड - गोल्ड का सालाना प्रीमियम 12,851 रुपये है और इसमें भी ओपीडी कवर राइडर के तौर पर अलग से उपलब्ध है. (डाटा सोर्स- पॉलिसीबाजार डॉट कॉम)