कोरोना संक्रमण की वजह से अर्थव्यवस्था के बिगड़े हालात में निवेशक हाई रिटर्न, हाई रिस्क निवेश इंस्ट्रूमेंट्स में पैसा लगाने से बच रहे हैं. इसके बजाय वे फिक्स्ड डिपोजिट और रेकरिंग डिपोजिट जैसे सुरक्षित और निश्चित रिटर्न वाले निवेश इंस्ट्रूमेंट को तवज्जो दे रहे हैं. दरअसल कोरोनावायरस के दौरान आर्थिक अनिश्चितता की वजह से एफडी की ओर निवेशकों का रुझान बढ़ता जा रहा है. अप्रैल-जून तिमाही के दौरान बैंक  एफडी में 6.1 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है, वहीं आरडी यानी रेकरिंग डिपोजिट में भी इजाफा देखने को मिला है. लेकिन आपको एफडी कराना चाहिए या आरडी. आइए देखते हैं आपके लिए कौन ज्यादा फायदेमंद है?


क्यूमुलेटिव और नॉन क्यूमुलेटिव एफडी 


एफडी में निवेश के दो विकल्प होते हैं. क्यूमुलेटिव और नॉन-क्यूमुलेटिव ऑप्शन. क्यूमुलेटिव ऑप्शन में मूलधन के साथ ब्याज भी इनवेस्ट हो जाता है. जबकि नॉन-क्यूमुलेटिव ऑप्शन में डिपोजिटर को हर एक, तीन या 12 महीने में इंटरेस्ट दे दिया जाता है.रेकरिंग डिपोजिट एकमुश्त डिपोजिट न हो कर एक निश्चित अंतराल में किया जाना वाले निवेश है. इससे बचत की एक निश्चित आदत बनती है. यह म्यूचुअल फंड के सिप में निवेश करने जैसा ही है.


एफडी और आरडी में ब्याज


फिक्स्ड डिपोजिट में निवेश की अवधि सात दिन से दस साल का जबकि आरडी में निवेश की अवधि छह महीने से दस साल तक होती है. एफडी एक हजार से पांच हजार रुपये और आरडी हर महीने दस हजार रुपये से शुरू हो सकता है.एफडी और आरडी के इंटरेस्ट रेट में अंतर होता है. एफडी का इंटरेस्ट रेट ढाई फीसदी से लेकर दस फीसदी तक हो सकता है लेकिन आरडी का रेट चार से आठ फीसदी तक होता है.


टैक्स देनदारी


एफडी और आरडी दोनों पर इनकम पर टैक्स लगता है. एफडी और आरडी पर टीडीएस लगता है. इंटरेस्ट पर आपके टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगता है, लेकिन वरिष्ठ नागरिकों को एक साल में 50 हजार रुपये के इंटरेस्ट इनकम पर टैक्स नहीं देना पड़ता है.एफडी और आरडी दोनों सुरक्षित निवेश हैं. आरडी हर महीने रेगुलर सेविंग्स में मदद करता है. इमरजेंसी के लिए ये दोनों निवेश माध्यम काफी मददगार है. इसलिए अपने पोर्टफोलियो में ऐसे निवेश को जरूर जोड़ें है. इनका महत्व कभी नहीं कम होगा.


SBI में घर बैठे खुलवा सकते हैं बचत खाता, बेहद आसान है तरीका


अगर चाहिए कम ब्याज दर वाला पर्सनल लोन तो इन बातों को कभी न करें नजरअंदाज