नई दिल्ली: कोरोना महामारी की वजह से परेशानियों का सामना कर रहे कर्जदारों को सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन खातों को 31 अगस्त तक एनपीए घोषित नहीं किया गया है, उन्हें अगले आदेश तक प्रोटेक्शन दिया जाएगा.
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने कोविड-19 महामारी की वजह से मोरेटोरियम (भुगतान पर रोक) अवधि के तहत किस्तों का भुगतान स्थगित रखने पर भी ब्याज की वसूली के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दैरान यह निर्देश दिया.
दो महीने के लिए कोई खाता NPA नहीं होगा
सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों की एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के कथन का संज्ञान लिया कि कम से कम दो महीने के लिए कोई भी खाता एनपीए नहीं होगा. पीठ ने अपने आदेश में कहा, "उपरोक्त कथन के मद्देनजर जिन खातों को 31 अगस्त, 2020 तक एनपीए घोषित नहीं किया गया है, उन्हें अगले आदेश तक एनपीए घोषित नहीं किया जाएगा."
केंद्र और रिजर्व बैंक की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बैंकिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और महामारी की वजह से प्रत्येक सेक्टर और प्रत्येक अर्थव्यवस्था दबाव में है. मेहता ने कहा कि पूरी दुनिया में यह एक स्वीकृत स्थिति है कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए ब्याज की माफी अच्छा विकल्प नहीं है.
कर्जदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं
मेहता ने केंद्र के हालिया हलफनामे का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि रिजर्व बैंक के सर्कुलर के अंतर्गत मोरेटोरियम कर्जदारों को राहत देता है क्योंकि इस दौरान बकाया रकम का भुगतान नहीं करने के बावजूद उनके खाते एनपीए नहीं होंगे. पीठ ने मेहता से कहा, "आपका कहना है कि दो महीने के लिए कोई एनपीए नहीं होगा. फिर तो जब हम मामले की सुनवाई कर रहे हैं तो बैंकों को कर्जदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए."
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट रिजर्व बैंक के 27 मार्च के सर्कुलर के उस हिस्से को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कर्ज देने वाली संस्थाओं को एक मार्च, 2020 से 31 मई 2020 के दौरान कोविड-19 महामारी की वजह से सावधि कर्जों की किस्तों के भुगतान स्थगित करने का अधिकार दिया गया है. यह अवधि बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दी गयी थी.
किस्तों के भुगतान का दबाव कम किया जाए
वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल ने पीठ से कहा कि वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ने महामारी की वजह से उत्पन्न स्थिति को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कदम उठाए हैं.
मेहता ने कहा, कोविड-19 का असर हर क्षेत्र में हो रहा है लेकिन यह अलग-अलग सेक्टर में अलग-अलग है, मसलन फार्मा और आईटी सेक्टरों में इसका असर सकारात्मक है. उन्होंने कहा कि यह फैसला किया गया है कि ब्याज माफी की बजाए किस्तों के भुगतान का दबाव कम किया जाए.
पीठ ने मेहता से कहा कि याचिकाकर्ताओं की शिकायत है कि सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा उपाय किए जाने के बावजूद इनका लाभ उन्हें नहीं दिया गया जबकि उन्हें यह मिलना चाहिए था. पीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों का जिक्र करते हुए कहा कि उनका कहना है कि क्षेत्र के हिसाब से राहत दी जानी चाहिए.
10 सितंबर को होगी अगली बहस
पीठ ने कहा कि एक अन्य मुद्दा यह है कि क्या आपदा प्रबंधन कानून के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और दूसरे प्राधिकारियों को और ज्यादा करना चाहिए था. इस मामले में बहस अधूरी रही. अब इस पर 10 सितंबर को आगे बहस होगी.
केंद्र ने हाल ही में कोर्ट से कहा था कि मोरेटोरियम अवधि में ईएमआई स्थगन पर ब्याज की माफी वित्त के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ होगी और यह उन लोगों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने कर्ज की अदायगी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार की है. हालांकि, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि भारतीय रिजर्व बैंक ने एक योजना तैयार की है जिसके तहत परेशानी का सामना कर रहे कतिपय कर्जदारों के लिए मोरेटोरियम की अवधि दो साल तक बढ़ाने का प्रावधान है.
इस संबंध में वित्त मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक से कोविड-19 महामारी के दौरान कर्ज किस्त के भुगतान पर दी गई छूट अवधि में ईएमआई किस्तों पर ब्याज और ब्याज पर ब्याज वसूले जाने की स्थिति के बारे में पूछा था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को सूचित किया था कि कोविड-19 महामारी के बीच किस्त भुगतान पर स्थगन अवधि को दो साल तक बढ़ाया जा सकता है.
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