नई दिल्ली: कोरोना संकट के समय लोन की मासिक किस्त स्थगित की अवधि पर ब्याज वसूले जाने को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कर्जदारों और कई प्रतिनिधि संस्थाओं ने बुधवार को ‘दंडात्मक’ कार्रवाई बताते हुए इसका विरोध किया. मामले में कई याचिकाओं पर कोर्ट ने बुधवार को अंतिम सुनवाई शुरू की.


इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण किस्त स्थगन (मोरेटोरियम) की अवधि के दौरान मासिक किस्त पर ब्याज वसूले जाने के फैसले की समीक्षा करने के लिए कहा था. केंद्र और रिजर्व बैंक ने न्यायालय को सूचित किया कि ऋण किस्त स्थगन अवधि की मासिक किस्तों पर ब्याज से छूट देना ‘वित्त के साधारण नियमों’ के खिलाफ होगा. साथ ही यह उन लोगों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने समय पर किस्तों का भुगतान किया.


सरकार और केंद्रीय बैंक ने कहा कि रिजर्व बैंक पहले ही अधिक दबाव वाले चुनिंदा कर्जदारों के लिए पहले ही स्थगन अवधि को दो साल तक बढ़ाने की योजना पेश कर चुका है. इसका फैसला संबंधित बैंक कर्जदार की स्थिति का जायजा लेकर कर सकते हैं.


ब्याज लगाकर ईमानदार कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव दत्ता ने याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा की ओर से कहा, ‘‘बैंक ऋणों का पुनर्गठन करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वह मोरेटोरियम योजना के तहत स्थगित मासिक किस्तों पर ब्याज लगाकर ईमानदार कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते.’’


पीठ में जस्टिस आरएस रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह भी शामिल हैं. दत्ता ने पीठ से कहा, "स्थगन अवधि के दौरान स्थगित किस्तों पर ब्याज लेना योजना का लाभ लेने वाले कर्जदारों पर 'दोहरी मार' है."


ब्याज पर ब्याज
गजेंद्र शर्मा पर एक बैंक का आवास ऋण है. उनकी ओर से पेश दत्ता ने कहा, ‘‘आरबीआई यह योजना लाया और हमने सोचा कि हम किस्त स्थगन अवधि के बाद ईएमआई भुगतान करेंगे, बाद में हमें बताया गया कि चक्रवृद्धि ब्याज लिया जाएगा. यह हमारे लिए और भी मुश्किल होगा, क्योंकि हमें ब्याज पर ब्याज देना पड़ेगा.’’


उन्होंने आगे कहा, ‘‘उन्होंने (आरबीआई) बैंकों को बहुत अधिक राहत दी है, लेकिन असल मायनों में हमें कोई राहत नहीं दी गई.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरी (याचिकाकर्ता) तरफ से कोई चूक नहीं हुई और एक योजना का हिस्सा बनने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर हमें दंडित नहीं किया जा सकता.’’


दत्ता ने दावा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक नियामक है, ‘‘बैंकों का एजेंट नहीं है’’ और यहां कर्जदारों को कोविड-19 के दौरान दंडित किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘अब सरकार कह रही है कि ऋणों का पुनर्गठन किया जाएगा. आप पुनर्गठन कीजिए, लेकिन ईमानदार कर्जदारों को दंडित न कीजिए.’’


कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी. ए. सुंदरम ने पीठ से कहा कि किस्त स्थगन को कम से कम छह महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए.


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