नई दिल्ली: सिस्टेमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी अपने लक्ष्यों के लिए निवेश का सबसे अच्छा तरीका है. एसआईपी नियमित रूप से निवेश करने में मदद करता है. लंबे समय तक निवेश करते रहने से खरीद की औसत लागत प्राप्त होती है. इसके जरिए धीरे-धीरे म्यूचुअल फंड निवेशकों को अलग-अलग शेयरों में पैसा लगाने का मौका मिलता है. इससे वे डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बना पाते हैं. यहां हम आपको कुछ तरीकों के बारे में बता रहे हैं जिनकी मदद से आप एसआईपी के जरिए ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकते हैं.
लक्ष्यों को एसआईपी से जोड़ें- कोई भी निवेश किसी मकसद से होना चाहिए. यह रिटायरमेंट, बच्चे की शादी, उनकी पढ़ाई या विदेश में छुट्टी के लिए बचत करना हो सकता है. फाइनेंशियल प्लानर कहते हैं कि एसआईपी को किसी खास लक्ष्य के साथ जोड़ना अहम है. इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि किसी लक्ष्य को पूरा करने में आपका निवेश किस हद तक बढ़ा है. यही नहीं, आपको यह भी पता चलता है कि लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर महीने कितनी बचत करनी है. अगर आपको दो साल में घर के डाउनपेमेंट के लिए 10 लाख रुपये की जरूरत है तो हर महीने 15000 रुपये से 20,000 रुपये के एसआईपी से भी बात नहीं बनेगी.
हर साल बढ़ाएं एसआईपी की रकम- एसआईपी आपको नियमित रूप से निवेश करने की सहूलियत देता है. हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि आप एसआईपी की रकम फिक्स रखें और इसमें बढ़ोतरी नहीं करें. इनकम बढ़ने के साथ आपकी सेविंग्स बढ़ेंगी. खासतौर से नौकरीपेशा लोगों के लिए जरूरी है कि वे अपनी इनकम बढ़ने के साथ हर साल एसआईपी की रकम को बढ़ा दें.
इसका मतलब यह हुआ कि आप बड़े लक्ष्य को टारगेट कर सकते हैं. फिर भले ही आपकी मौजूदा इनकम बड़े निवेश की इजाजत न देती हो. एसआईपी की रकम धीरे-धीरे बढ़ाने से आपकी बचत पर जबर्दस्त असर पड़ता है. यहां तक सिप की रकम में सिर्फ 10 फीसदी की बढ़ोतरी से बचत की रकम में 45 फीसदी इजाफा हो सकता है.
अलग-अलग रखें सिप की तारीख- फंड हाउसों में कुछ खास तारीखें होती हैं जिनमें सिप निवेश किया जा सकता है. चाहे आप उन्हीं फंडों के सेट के जरिए एसआईपी शुरू करने की योजना बना रहे हों या फिर हर एक लक्ष्य के लिए अलग-अलग फंडों से, अच्छा होगा कि महीने की अलग-अलग तारीखों पर निवेश को रखा जाए.
यह स्ट्रैटेजी आपको अपने सेविंग्स अकाउंट में कुछ लिक्विडिटी बनाए रखने में मदद करेगी. कारण है कि इससे एक साथ खाते से पैसा नहीं निकल जाएगा. इसका बड़ा फायदा यह है कि आप मार्केट की टाइमिंग का जोखिम घटा सकते हैं क्योंकि पैसा अलग-अलग दिनों पर निवेश होगा.
एसआईपी बंद करने का फैसला- एसआईपी शुरू करना जितना अहम है, उतना ही जरूरी है इसे बंद करना. अगर आपके दिमाग में कोई टारगेट है तो इसके करीब आने पर इसे बंद कर दें. लक्ष्य अगर समय से पहले पूरा हो जाए तो पैसा किसी ज्यादा स्थिरता वाले विकल्प में लगा दें. बाजार के उतार-चढ़ाव में इस पैसे को छोड़े रखना सही नहीं होगा. वहीं, अगर आप लक्ष्य के लिए पर्याप्त बचत नहीं कर पाए हैं तो एसआईपी की अवधि बढ़ा दें.