Midday Meal: मिडडे मील के रसोइयों के पेट पर डाका, जानिए स्कूलों में कैसे हो रहा शोषण
cook: मीडडे मील योजना में रसोइयों के पगार मद के 7400 करोड़ रुपये उस स्थिति में भी बचा लिए जाते हैं, जबकि इसके सालाना बजट का आधा भारत सरकार की ओर से ही दिया जाता है.
Minimum Wage: देश के करोड़ों बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए मीडडे मील बनाने वाले रसोइयों के पेट पर ही डाका डाला जा रहा है. यह कोई और नहीं बल्कि सरकारी व्यवस्था ही उन्हें शोषण की चक्की में पीस रही है. सरकारी स्कूलों में मिडडे मील बनाने वाले इन रसोइयों को मिनिमम वेज भी नहीं दिया जाता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सभी रसोइयों को कुल मिलाकर सालभर में 7400 करोड़ रुपये की कम पगार दी जाती हैं. देशभर के इन 25 लाख रसोइयों में 90 फीसदी महिलाएं हैं. प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण कार्यक्रम के तहत चलाई जा रही इस योजना में रसोइयों के पगार मद के 7400 करोड़ रुपये उस स्थिति में बचा लिए जाते हैं, जबकि इसके सालाना बजट का आधा भारत सरकार की ओर से ही दिया जाता है.
पगार में हकमारी की ऐसे की गई है गणना
देश में 25 लाख से अधिक स्कूलों में 25 लाख से अधिक रसोइए हैं. राष्ट्रीय स्तर पर मिनिमम वेज 5340 रुपये हर महीने तय है. कोई भी राज्य इससे कम वेज नहीं तय कर सकता है. मिनिमम वेज के हिसाब से 25 लाख से अधिक रसोइयों का सालाना वेज 13,439 करोड़ होगा. फिलहाल तय दर के हिसाब से रसोइयों के वेज मद में लगभग 6,065 करोड़ दिए जाते हैं. इस तरह लगभग 7,400 करोड़ रुपये कम दिए जाते हैं.
जानिए मिडडे मील वाले रसोइयों को कितनी मिलती है रकम
रसोइयों को मिलने वाले ऑनरेरियम का 60 फीसदी भारत सरकार को देना है. कुछ राज्यों में यह 90 फीसदी है. 2009 से ही रसोइयों को मासिक मानदेय एक हजार रुपये प्रति माह तय है. भारत सरकार की ओर से मिडडे मील के बजट में 1592 करोड़ का प्रावधान है. जबकि मिनिमम वेज के हिसाब से भी भारत सरकार को रसोइयों के मानदेय मद में 8,497 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी देनी चाहिए. इस तरह मिनिमम वेज के तौर पर भारत सरकार की ओर से भी रसोइयों के लिए 6900 करोड़ कम दिए जाते हैं. ज्ञात हो कि 2024-25 के बजट में भारत सरकार की ओर से मिडडे मील के बजट में 12,467 करोड़ का प्रावधान है.
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