नई दिल्लीः दो लाख से भी ज्यादा कंपनियो के नाम कंपनी रजिस्ट्रार की सूची से हटा दिया गया है. साथ ही सरकार ने ऐसी कंपनियों के बैंक खाते भी ‘फ्रीज’ कर दिए हैं.


वित्त मंत्रालय के मुताबिक, कंपनी कानून के प्रावधानो के तहत कुल मिलाकर 2 लाख 9 हजार, 32 कंपनियों के नाम काटे गए. अब इन कंपनियो के जो भी निदेशक और वित्तीय लेन-देन के लिए अद्धोहस्ताक्षरी थी वो पूर्व निदेशक और पूर्व अद्धोहस्ताक्षरी कहलाएंगे. ऐसे लोगो को रजिस्टर से हटाए गए कंपनियों के खाते से पैसा निकालने या जमा कराने पर रोक रहेगी. हां, यदि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी कंपनियों की पूर्व स्थिति बहाल कर देती है तो फिर बैंक खातों से पैसा निकालने या जमा कराने की सुविधा मिल जाएगी.


रजिस्टर से हटायी गयी कंपनियां देश भर में 24 कंपनी रजिस्ट्रार के यहां पंजीकृत रही थी. मसलन, अहमदाबाद के कंपनी रजिस्ट्रार के यहां से 6000 कंपनियो के नाम हटाए गए जबकि बैंगलुरु से ये संख्या 11178 रही वही दिल्ली ये ये संख्या 22866 और मुंबई में 9114. इन कंपनियों के वित्तीय लेन-देन पर शक है और इनके खिलाफ कार्रवाई का इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले ही किया था.


ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली जुलाई को चार्टड अकाउंटेंट के सालाना जलसे में ऐलान किया था, “48 घंटे पहले एक लाख कंपनियों को कलम के एक झटके से हताहत कर दिया. Registrar of Companies से इनका नाम हटा दिया है. ये मामूली निर्णय नहीं है दोस्तो राजनीति के हिसाब किताब करने वाले ऐसे फैसले नहीं ले सकते हैं| राष्ट्र हित के लिए जीने वाले ही ऐसे फैसले कर सकते हैं. एक लाख कंपनियों को कलम के एक झटके से खत्म करने की ताकत देश भक्ति की प्रेरणा से आ सकती है. जिन्होंने गरीब को लूटा है उन्हें गरीब को लौटाना ही पड़ेगा.“


बहरहाल, वित्त मंत्रालय के मुताबिक, वित्तीय सेवाओं के विभाग (डीएफएस) ने इंडियन बैंक एसोसिएशन के मार्फत सभी बैंको को सलाह दिया है कि जिन कंपनियों के नाम हटाए गए हैं, उनके बैंक खातों पर तुरंत पाबंदी लगायी जाए. ऐसी तमाम कंपनियों की सूची कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के वेबसाइट (http://www.mca.gov.in) पर उपलब्ध है.


बैंको से ये भी कहा गया है कि नाम हटायी गयी कंपनियों को अलावा, बाकी के मामले में ही एहतियात बरती जाए. हो सकता है कि मंत्रालय की वेबसाइट पर कुछ कंपनियो को ‘एक्टिव’ दिखाया जाए, लेकिन मुमकिन है कि उन्होंने वित्तीय जानकारी देने, सालाना रिटर्न दाखिल करने या रिटर्न में कर्ज अदायगी को लेकर सही-सही जानकारी नहीं दे. तो ऐसी कंपनियां शक के दायरे में हैं. कोई भी कंपनी सही-सही जानकारी देने से बचे तो उस पर शक बनता ही है औऱ बैंकों को भी उनसे लेन-देन में सावधानी बरतनी चाहिए.