नई दिल्लीः फंसे कर्ज की समस्या से जुझ रहे सरकारी बैंको ने 31 मार्च को खत्म हुए कारोबारी साल के दौरान 74,400 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले. बट्टे खाते मे डालने का मतलब किसी भी सूरत में वसूला नहीं जाने वाले कर्ज को पूरी तरह से किताब से हटाना है.
सोमवार को सरकारी बैंक प्रमुखों के साथ बैठक में बैंकों के फंसे कर्ज की मौजूदा स्थिति पर चर्चा हुई. इसी दौरान ये जानकारी दी गयी कि सरकारी बैंकों की ओर से बट्टे खाते में डाली गयी रकम कारोबारी साल 2016-17 के दौरान 35 फीसदी बढ़ी. 2015-16 के दौरान बट्टे खाते में कुल मिलाकर 55 हजार करोड़ रुपये डाले गए थे. बट्टे खाते की रकम के बारे में ये जानकारी ऐसे समय में आयी है जब तमाम सरकारी बैंक भारी-भरकम फंसे कर्ज की समस्या से जुझ रहे है और इसका असर उनके मुनाफे पर भी पड़ा है. ध्यान रहे कि कारोबारी साल 2016-17 के दौरान फंसे कर्ज के लिए रकम का इंतजाम (प्रोवजनिंग) करने के बाद 21 सरकारी बैंकों का शुद्ध मुनाफा महज 574 करोड़ रुपये रहा.
इसके अलावा रिजर्व बैंक ऐसे कर्जदारों की लिस्ट बना रहा है जिनपर नए दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी. इसी के तहत रिजर्व बैंक ने 12 ऐसे बैंक खातों की पहचान की है जिन पर 2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है. ये बैंकों के कुल 8 लाख करोड़ के कुल एनपीए का तकरीबन 25 फीसदी है. जिसका साफ मतलब है कि सिर्फ इन 8 खातों पर 5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. रिजर्व बैंक ऐसे खातों पर बैंकों को दिवाला प्रोसेस शुरू करने का आदेश जल्द देने वाला है. इन कर्जदारों से पैसा वसूलने के लिए दिवालियापन प्रक्रिया शुरू करने को कहा जाएगा. गौरतलब है कि बैंकों के एनपीए की हालत देखें तो कुल 8 लाख करोड़ रुपये के नॉन परफोर्मिंग एसेट्स में से 6 लाख करोड़ सिर्फ सरकारी बैंकों का एनपीए है.
बैठक में जानकारी दी गयी कि
सरकारी बैंकों का कुल ‘स्ट्रेस्ड असेट’ 2015-16 के 6.99 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2016-17 में 7.40 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचा.
‘स्ट्रेस्ड असेट’ का मतलब एक कारोबारी साल के दौरान कुल फंसा कर्ज, वसूला गया फंसा कर्ज, और बट्टे खाते में डाली गयी रकम का योग होता है.
केवल फंसे कर्ज यानी एनपीए ( Non Performing Assets) की बात की जाए तो ये रकम 4.78 लाख करोड़ रुपये से 5.74 लाख करोड़ रुपये हो गयी. एऩपीए का मतलब ऐसे कर्ज से होता है जिसमें लगातार तीन मासिक किश्त अदा नहीं की जाती है.
फंसे हुए कर्ज यानी एनपीए में 79 फीसदी रकम ऐसे खातों से जुड़ी थी जिसमें कर्ज की रकम 10 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की है.
फंसे हुए कर्ज के साथ जुड़े और बड़े तथ्य
फंसे हुए कर्ज में सबसे बड़ी हिस्सेदारी स्टील सेक्टर (26.1 फीसदी) की रही जबकि 11.8 फीसदी के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर दूसरे, 9.7 फीसदी के साथ खेती बारी तीसरे और 6.6 फीसदी के साथ कपड़ा उद्योग चौथे स्थान पर रहा.
बैंकों ने फंसे कर्ज के लिए कुल मिलाकर 1.39 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया. ये 2015-16 के 1.42 लाख करोड़ रुपये से करीब पौने दो फीसदी कम है.
बीते कारोबारी साल के दौरान 81 हजार करोड़ रुपये का फंसा कर्ज बैंक वापस पाने में कामयाब रहे जबकि 2015-16 में ये रकम 54 हजार करोड़ रुपये थी.
2016-17 के दौरान नए फंसे कर्ज में कमी आयी और ये 3.63 लाख करोड़ रुपये से घटकर 2.63 लाख करोड़ रुपये रह गया.
सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर फंसे कर्ज की समस्या से निबटने में जुटे है. रिजर्व बैंक ऐसे कर्जदारों की सूची तैयार कर रहा है जिनपर नए दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी.