एमएसएमई सेक्टर के लिए सरकार के तीन लाख करोड़ रुपये के पैकेज का कोई खास असर नहीं दिख रहा है. बैंकों का एमएसएमई एनपीए बढ़ता दिख रहा है. एमएसएमई के लिए मोरेटोरियम की अवधि अगस्त में खत्म हो रही है. इसके बाद के महीनों में एमएसएमई सेक्टर में और नौकरियां जा सकती हैं.


 लोन चुकाने की हालत में नहीं होंगे 61 फीसदी एमएसएमई 


फेडरेशन ऑफ इंडियन एमएसएमई के मुताबिक कोरोनावायरस संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से अगस्त तक इस सेक्टर में साढ़े चार करोड़ नौकरियां जा सकती हैं. फेडरेशन के मुताबिक एमएसएमई आत्मनिर्भर पैकेज के तहत सरकार की ओर से जारी तीन लाख करोड़ रुपये लोन सहायता का कोई फायदा नहीं दिख रहा है क्योंकि बैंक लोन देने में हिचकिचा रहे हैं. इससे आत्मनिर्भर पैकेज का जमीन पर कोई असर नहीं दिख रहा है.फेडरेशन के मुताबिक सितंबर से 61 फीसदी एमएसएमई अपना लोन चुकाने की हालत में नहीं रहेंगे. सिर्फ 16  फीसदी एमएसएमई ही अपना लोन चुकाने की स्थिति में होंगे.


सिर्फ 19 फीसदी एमएसएमई को  पैकेज का लाभ 


एमएसएमई यूनिटों में जून तक ढाई से तीन करोड़ नौकरियां जा चुकी थीं. अगस्त तक और डेढ़ करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं. सर्वे के मुताबिक लगभग 82 फीसदी एमएसएमई को इमरजेंसी फंड की जरूरत है. सरकार ने जो तीन लाख करोड़ रुपये का सहायता पैकेज दिया है, उससे सिर्फ 19 फीसदी एमएसएमई की जरूरतें पूरी हुई हैं. अभी भी 79 फीसदी एमएसएमई क्रेडिट गारंटी स्कीम के दायरे से बाहर हैं.


इस बीच एक सर्वे के मुताबिक देश के 67 फीसदी एमएसएमई चीन से होने वाले आयात को रोकने का समर्थन कर रहे हैं. हालांकि, सिर्फ 35 फीसदी एमएसएमई ही मानते हैं कि चीन से होने वाले आयात पर रोक से उनका बिजनेस बढ़ेगा.  42 फीसदी एमएसएमई को चीनी वस्तुओं के आयात पर रोक से कारोबार में कोई फायदा नहीं दिख रहा है. एमएसएमई का मानना है कि उनकी हालत खराब है और सरकार की मदद के बगैर वे खुद को बचा नहीं पाएंगे. सिर्फ 11 फीसदी एमएसएमई मानते हैं कि सरकारी सहायता के भी वे अपना अस्तित्व बचा लेंगे.