मल्टीकैप फंड्स के नियम में बदलाव: मिड कैप और स्मॉल कैप में निवेश के जोखिम को समझें
फिलहाल मिड कैप और स्मॉल कैप शेयरों को शॉट टर्म में निवेशकों का समर्थन मिलता दिख रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे मल्टी-कैप में रिस्क-रिवार्ड रेश्यो में बदलाव आ सकता है.
सेबी की ओर से मल्टीकैप फंड्स के लिए नए नियमों के ऐलान से बाद मिड और स्मॉल कैप शेयरों में निवेश बढ़ने की उम्मीद है. सेबी ने हाल ही में कहा था कि मल्टीकैप म्यूचुअल फंड को 75 फीसदी इक्विटी में निवेश करना होगा. यानी अब उन्हें 25-25-25 के हिसाब से लार्ज, मीडियम और स्मॉल कैप शेयरों में निवेश करना होगा. लिहाजा निवेशकों को इसके जोखिम को समझना जरूरी है.
रिस्क-रिवार्ड रेश्यो में आ सकता है अंतर
फिलहाल मिड कैप और स्मॉल कैप शेयरों को शॉट टर्म में निवेशकों का समर्थन मिलता दिख रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे मल्टी-कैप में रिस्क-रिवार्ड रेश्यो में बदलाव आ सकता है. निवेशकों को इस पर नजर रखने की जरूरत है. दरअसल मिड और स्मॉल कैप शेयरों में आवंटन बढ़ाते वक्त निवेशकों को अपने रिस्क प्रोफाइल पर नजर रखना जरूरी है. इसके हिसाब से ही इसमें आवंटन बढ़ाना चाहिए.
मजबूत रिकार्ड देख कर ही करें निवेश
पिछले दो-तीन वर्षों के दौरान मिड और स्मॉल कैप इंडेक्स का प्रदर्शन कमजोर रहा है. लिहाजा निवेश को लेकर उनकी कम सक्रियता का भी पता चलता है. हालांकि पिछले तीन महीने में हालांकि, मिड और स्मॉल-कैप सूचकांक दोनों में सुधार आया है और ये सेंसेक्स में 16 फीसदी की तेजी के मुकाबले 17-23 फीसदी बढ़े हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि मिड और स्मॉल-कैप में जोखिम मौजूदा कोविड-19 संकट की वजह से बढ़ा है. कमजोर बैलेंस शीट वाली छोटी कंपनियां इस संकट को झेलने में सक्षम नहीं है. लिहाजा निवेशकों को मल्टीकैप फंड्स में जोखिम को लेकर खास तौर पर सतर्क रहना चाहिए. निवेशकों को अच्छे कॉरपोरेट परफॉरमेंस, मजबूत बैलेंस शीट और वर्किंग कैपिटल की समस्या से मुक्त मिड और स्मॉल कंपनियों के शेयरों पर फोकस करना चाहिए. निवेशक कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, मोटर व्हेकिल और आईटी जैसे क्षेत्रों के मिड और स्मॉल-कैप शेयरों में निवेश के विकल्प आजमा सकते हैं.
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