Narayana Murthy: इंफोसिस फाउंडर ने खोला भारत की सबसे बड़ी समस्या का राज, बोले- इमरजेंसी के बाद नहीं दिया गया ध्यान
Narayana Murthy on Population: इंफोसिस के को-फाउंडर मानते हैं कि इमरजेंसी के बाद इस समस्या पर ध्यान नहीं देने से अब भारत का भविष्य ही खतरे में पड़ गया है...
देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी इंफोसिस के को-फाउंडर एवं अव्वल उद्यमियों में एक नारायण मूर्ति ने भारत के सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौती के बारे में बात की है. जहां एक ओर कई अर्थशास्त्री और इकोनॉमिस्ट भारत के पक्ष में डेमोग्राफिक डिविडेंड की बात करते हैं, वहीं मूर्ति का मानना है कि तेजी से बढ़ रही आबादी देश की सस्टेनेबिलिटी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
इमरजेंसी के बाद किसी ने नहीं दिया ध्यान
नारायण मूर्ति ने आबादी की समस्या को लेकर यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में की. वह प्रयागराज स्थित मोतीलाल नेहरू नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कंवोकेशन सेरेमनी को संबोधित कर रहे थे. सेरेमनी के चीफ गेस्ट मूर्ति ने कहा कि देश में इमरजेंसी के बाद आबादी की समस्या पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और अब उसके चलते देश का भविष्य खतरे में है.
इन मोर्चों पर खराब हो रही हालत
बकौल इंफोसिस को-फाउंडर, आबादी के चलते भारत के सामने कई गंभीर चुनौतियां पैदा हो रही हैं. उदाहरण के लिए प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता, हेल्थकेयर की फैसिलिटीज आदि. भारत की तुलना में अमेरिका, ब्राजील और चीन जैसे देशों में प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता ज्यादा है. भारत में हमने इमरजेंसी के बाद इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया, जो देश की सस्टेनेबिलिटी के लिए खतरा बन गया है.
आबादी में चीन को पीछे छोड़ चुका है भारत
नारायण मूर्ति की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है. लंबे समय से चीन दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश था, लेकिन अब भारत उससे आगे निकल चुका है. संयुक्त राष्ट्र के आकलन के हिसाब से भारत की आबादी 1.44 करोड़ से ज्यादा है, जबकि चीन की आबादी 1.42 करोड़ होने का अनुमान है.
अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा बताते रहे हैं कई एक्सपर्ट
मूर्ति की टिप्पणी इस लिहाज से भी प्रासंगिक हो जाती है, क्योंकि उनकी राय कई अर्थशास्त्रियों व विशेषज्ञों से इतर है. भारत की बढ़ती आबादी को कई विशेषज्ञ समस्या की जगह वरदान बताते आए हैं. इसे भारत के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड बताते हुए कहा जाता रहा है कि इससे भारत के पास सस्ता मानव श्रम उपलब्ध हो रहा है, जो अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक है.
चीन के साथ तुलना करने पर भी आपत्ति
हालांकि मूर्ति इस लिहाज से भी आपत्ति जताते हैं. उनका कहना है- अभी भारत के लिए हब या ग्लोबल लीडर कहना जल्दीबाजी है. चीन पहले ही दुनिया की फैक्ट्री बन चुका है. अन्य देशों के सुपरमार्केट और होम डिपो में बिक रहे लगभग 90 फीसदी सामान चीन में बन रहे हैं. उनकी अर्थव्यवस्था का आकार भारत की तुलना में 6 गुना है. यह कहना बड़ा दुस्साहस है कि भारत मैन्युफैक्चरिंग का हब बन जाएगा.
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