कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान लॉकडाउन के दौरान अपने घरों को लौटे प्रवासी कामगारों में से दो तिहाई वापस अपने काम की जगह पहुंच चुके हैं या पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं. 4835 परिवारों के बीच एक सर्वे में इसका खुलासा हुआ है. आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम, एक्शन फॉर सोशल एडवांसमेंट, ग्रामीण सहारा, आई-सक्षम, प्रदान, साथी-अप, सेस्टा,सेवा मंदिर और ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन के एक संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि लॉकडाउन के दौरान घर लौटे प्रवासी कामगारों से 29 फीसदी अपने-अपने काम के शहर लौट चुके हैं. जबकि 45 फीसदी ऐसा करने का इरादा रखते हैं.


80 फीसदी को कौशल के मुताबिक नहीं मिल रहा काम 


इस अध्ययन में कहा गया है कि गांवों में कुशल कामगारों को उनके कौशल के मुताबिक काम नहीं मिल रहा है. इसलिए दो तिहाई मजूदर या तो अपने काम की पुरानी जगह लौट चुके हैं या लौटना चाहते हैं. यह अध्ययन 11 राज्यों के 48 जिलों के 4835 परिवारों के बीच कराया गया था. यह अध्ययन 24 जून और 8 जुलाई के बीच कराया गया था. अध्ययन के मुताबिक जो प्रवासी मजदूर घर लौट गए थे ,उनमें से 80 फीसदी का कहना था कि उन्हें उसके कौशल के मुताबिक काम नहीं मिल रहा है.


बच्चों को स्कूल से निकालने पर मजबूर हैं मजदूर 


अध्ययन के मुताबिक हर चौथा प्रवासी मजदूर अब भी काम की तलाश कर रहा है. लगभग 24 फीसदी प्रवासी मजदूर अपने बच्चों को स्कूल से निकालने की सोच रहे हैं. इसके मुतबिक कोरोनावायरस के संक्रमण से पैदा संकट साफ दिख रहा है. लेकिन इसका सामना करने के लिए जो ढांचागत बदलाव होना चाहिए वो अभी तक नहीं दिखा है. गांवों में कोविड-19 से पैदा स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहा है. सर्वे में कहा गया है कि 43 फीसदी परिवारों ने अपने भोजन में कमी कर दी है. वहीं 55 फीसदी ने अपने भोजन में आइटमों को घटा दिया है. हालांकि पीडीएस की वजह से भोजन की उपलब्धता बढ़ी है. स्टडी में कहा गया है कि 6 फीसदी परिवारों ने अपनी घरेलू चीजें गिरवी रखी हैं. जबकि 15 फीसदी ने वित्तीय संकट की वजह से अपने मवेशियों को बेच दिया है. लगभग दस फीसदी लोगों ने नाते-रिश्तेदारों और परिवार वालों से कर्ज लिया है.



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