भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन योजनाओं का एक महत्वपूर्ण इतिहास रहा है. हाल ही में, केंद्र सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) की घोषणा की है, जो ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) और न्यू पेंशन स्कीम (NPS) के बीच का पुल बनाती है. यह समझना जरूरी है कि ये तीनों योजनाएं एक-दूसरे से कैसे अलग हैं और नौकरी करने वालों के लिए इनके बारे में जानना कितना जरूरी है.
ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS)
OPS सरकारी कर्मचारियों के लिए एक पारंपरिक पेंशन योजना है, जिसमें रिटायरमेंट के समय कर्मचारी की अंतिम बेसिक सैलरी का 50 फीसदी पेंशन के रूप में दिया जाता है. इस योजना में कर्मचारियों को अपनी ओर से कोई योगदान नहीं करना होता.
OPS की विशेषताएं
रिटायरमेंट से पहले की अंतिम बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते का 50 फीसदी.
कर्मचारियों को पेंशन फंड में कोई पैसा नहीं डालना होता.
रिटायरमेंट पर 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है.
अगर रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होती है, तो उसके परिवार को पेंशन मिलती है.
न्यू पेंशन स्कीम (NPS)
NPS को OPS के जगह पर लागू किया गया था, लेकिन इसे लेकर काफी विवाद हुआ. इस योजना में कर्मचारियों को अपनी बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते का 10 फीसदी हिस्सा पेंशन फंड में डालना होता है.
NPS से जुड़ी बातें
NPS का निवेश शेयर बाजार पर आधारित होता है, इसलिए इसमें जोखिम होता है.
रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन का कोई प्रावधान नहीं होता.
रिटायरमेंट पर कुल जमा राशि का 40 फीसदी एकमुश्त निकाला जा सकता है, जबकि 60 फीसदी एन्युटी के लिए रखा जाता है.
यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS)
UPS, OPS और NPS का एक मिश्रण है, जिसे सरकारी कर्मचारियों के लिए लाया गया है. यह योजना 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी.
UPS की विशेषताएं
पिछले 12 महीनों की औसत बेसिक सैलरी का 50 फीसदी रिटायरमेंट के बाद पेंशन के रूप में दिया जाएगा.
UPS में कर्मचारियों को अपने वेतन का 10 फीसदी योगदान देना होगा, जबकि सरकार इसका 18.5 फीसदी योगदान करेगी.
UPS और OPS में पेंशन पाने के लिए किसी निवेश की जरूरत नहीं होती.
UPS और OPS में महंगाई का ध्यान रखा जाता है, जबकि NPS में ऐसा नहीं था.