Income Inequality: आम भारतीयों की पूरे साल की सैलरी पर इन कर्मचारियों के चंद घंटे भारी, पिछले साल और बढ़ी खाई
Oxfam Income Report: भारत जैसे विकासशील देशों में आय में असमानता पहले से ही गंभीर चिंता का विषय रही है. पिछले साल के दौरान यह खाई अब और चौड़ी हो गई है...
अमीरों और गरीबों के बीच कमाई की खाई (Income Inequality) पर सालों से बहसें होती आई हैं. इसके बाद भी साल दर साल यह खाई और चौड़ी होती गई है. खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में जब-जब आर्थिक स्थितियां प्रतिकूल हुई हैं, यह खाई (India Income Gap) बढ़ी है. पिछले साल के दौरान यह असमानता और बढ़ गई, क्योंकि एक ओर कंपनियां खर्च कम करने के लिए कर्मचारियों की छंटनी कर रही थी और सैलरी में कटौती कर रही थी, दूसरी ओर पहले से ज्यादा कमा रहे लोगों की सैलरी बढ़ाई जा रही थी. एक ताजी रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है.
इस कदर गंभीर है आय में असमानता
आय व संपत्ति समेत विकास के विभिन्न मानकों पर नजर रखने वाली अंरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम इंटरनेशनल (Oxfam International Inequality Report) ने आय में असमानता को लेकर सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कंपनियों के टॉप एक्सीक्यूटिव्स महज 4 घंटे में इतने पैसे बना लेते हैं, जितना कमाने में आम भारतीयों को पूरे साल लग जाते हैं. मतलब साफ है कि आम भारतीयों की साल भर की कमाई पर टॉप एक्सीक्यूटिव्स के चंद घंटे भारी पड़ जाते हैं.
आम लोगों की सैलरी में हुई कटौती
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल के दौरान भारत के 150 टॉप एक्सीक्यूटिव्स को औसतन 1 मिलियन डॉलर यानी करीब 8.17 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ. दूसरी ओर आम कर्मचारियों की सैलरी में कटौती की गई. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल पूरी दुनिया में असमानता बढ़ी है. भारत समेत ब्रिटेन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका जैसे बाजारों में कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों की कमाई पिछले साल 9 फीसदी बढ़ी, जबकि आम कामगारों के मेहनताने में 3.1 फीसदी की कटौती की गई.
छंटनी के दौर में भी इन्हें मिला हाइक
यह आंकड़ा इस कारण भी हैरान करता है कि पिछले साल से ही पूरी दुनिया में कंपनियां लागत कम करने के विभिन्न उपाय करने में जुटी हुई हैं. खर्च कम करने के प्रयासों के तहत कंपनियां बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों को काम से निकाल रही हैं. छंटनी का यह सिलसिला अमेरिका और यूरोप समेत तमाम विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी दिख रहा है, और भारत जैसे विकासशील देश भी प्रभावित हैं. कई कंपनियां अपने कर्मचारियों की सैलरी में कटौती कर रही हैं. वहीं दूसरी ओर यही कंपनियां अपने टॉप एक्सीक्यूटिव्स के पैसे बढ़ा रही हैं. हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा को इस कारण खूब आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.
आम कर्मचारियों को इतना नुकसान
ऑक्सफेम ने यह रिपोर्ट इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) और विभिन्न सरकारी सांख्यिकी विभागों के से मिले आंकड़ों के आधार पर तैयार की है. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल के दौरान 50 देशों के 1 बिलियन कामगारों के सालाना पेमेंट में औसतन 685 डॉलर यानी करीब 55,995 रुपये की कटौती हुई है. इस तरह इन 1 बिलियन लोगों को कुल मिलाकर कमाई में 746 बिलियन डॉलर यानी करीब 61.04 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है.
ऐसे कम हो सकती है असमानता
ऑक्सफेम इंटरनेशनल सालों से आर्थिक असमानता पर रिपोर्ट जारी करते आया है. संस्थान का इस बात पर फोकस रहा है कि दुनिया भर में आर्थिक असमानता को कम करने की संजीदा कोशिशें होनी चाहिए, वर्ना लंबे समय में इसका परिणाम अस्थिरता के रूप में देखने को मिल सकता है. इसके उपाय के तहत ऑक्सफेम इंटरनेशनल का सबसे प्रमुख सुझाव है कि दुनिया के 1 फीसदी सबसे अमीर लोगों पर स्थाई रूप से वेल्थ टैक्स लगाया जाना चाहिए.
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