बचपन की कुछ यादें, कुछ आदतें और कुछ चाहतें बदलते वक्त के साथ भी नहीं बदलतीं. कुछ यादों से भावनाएं जुड़ी होती हैं. जैसे पारले जी. लोगों की नज़र में ये बिस्किट नहीं बल्कि यादों का एक ज़खीरा है. लोग बदलते रहे, पीढियां बदलती रहीं लेकिन पारले जी अपने स्वादों के साथ वहीं खड़ा रहा.


पारले जी का सफ़र
आज़ादी के पहले पारले जी का शुरू हुआ ये सफ़र अब तक जारी है. कोरोना महामारी के समय जब उत्पादों की बिक्री का बाज़ार पर बुरा प्रभाव पड़ा ऐसे में पारले जी ने रिकार्ड तोड़ सेल की. पारले जी के शेयर में 5 % के मुनाफ़े की वजह बताते हुए पारले प्रोडक्टस के सीनियर अधिकारी मयंक शाह ने कहा कि महामारी के समय सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के ज़रिए राहत पैकेट के रूप में इसका वितरण है. ये ग्लूकोज़ का अच्छा स्त्रोत होने के साथ सबसे कम क़ीमत दो रूपए में भी उपलब्ध है.


पारले जी की निर्माता कंपनी पारले प्रोडक्ट है. पारले जी को पहले पारले-ग्लूको के रूप में जाना जाता था. साल 1980 तक इसे इसी नाम से जाना गया. आज़ादी से पहले ही इसकी शुरूआत 1939 में हुई थी और 2013 आते - आते ये 6 मीलीयन रिटेल स्टोरों तक अपनी पहुंच बना चुकी थी और उसी साल 2013 में पारले जी ने तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता वस्तु की श्रेणी के खुदरा बाज़ार में 5,000 करोड़ का रिकार्ड मुनाफ़ा दर्ज किया था.


लोगों की भावनात्मक यादें
पारले जी को लेकर सोशल मीडिया पर लोग अपनी-अपनी यादों को साझा कर रहे हैं. कुछ लोग इसे फर्स्ट क्रश बता रहे हैं तो कुछ कह रे हैं कि ये बिस्किट नहीं भावना है. कई तो इसे भारत का अपना बिस्किट तक कह रहे हैं. एक्टर रंदीप हुडा ने भी चाय के साथ पारले जी का साथ को याद किया और कहा कि पारले जी मेरा हमेशा से साथी रहा. रंदीप हुडा ने साथ ही इसके प्लास्टिक रैपर को बदलने की भी सलाह दी जिसका कई पर्यावरणविद ने स्वागत किया है.