आने वाले दिनों में देश में इंश्योरेंस सस्ते हो सकते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता में तेजी आने की संभावना है. दरअसल संसद की एक समिति ने आम लोगों के लिए इंश्योरेंस खासकर हेल्थ इंश्योरेंस को किफायती बनाने की वकालत की है. अगर समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया जाता है तो इंश्योरेंस के सस्ते होने का रास्ता साफ हो जाएगा.
संसदीय समिति ने की ये सिफारिश
समिति का कहना है विभिन्न इंश्योरेंस प्रोडक्ट खासकर हेल्थ और टर्म इंश्योरेंस के मामले में माल एवं सेवा कर की दरों को तार्किक बनाया जाना चाहिए. संसदीय समिति का मानना है कि अभी इंश्योरेंस प्रोडक्ट पर जीएसटी की दर ज्यादा है, जिसके चलते लोगों के ऊपर प्रीमियम का बोझ बढ़ जा रहा है. इन्हें आम लोगों के लिए अफोर्डेबल बनाने के लिए जीएसटी की दरों को कम करने की जरूरत है.
जयंत सिन्हा की अगुवाई वाली समिति
पूर्व वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने इंश्योरेंस इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों, बीमा नियामक इरडा के अधिकारियों और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ चर्चा करने के बाद अपनी सिफारिशें तैयार की हैं. वित्तीय मामलों की संसदीय समिति देश में इंश्योरेंस के परिदृश्य को मजबूत बनाने के उपायों की तलाश कर रही थी.
अभी 18 फीसदी है जीएसटी की रेट
ससंदीय समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि इंश्योरेंस को लोगों के लिए ज्यादा किफायती बनाने के लिए खास तौर पर हेल्थ इंश्योरेंस के मामले में जीएसटी को कम करने की जरूरत है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए रिटेल पॉलिसी, 5 लाख रुपये तक की लिमिट वाली माइक्रोइंश्योरेंस पॉलिसी और टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए जीएसटी की दरें कम की जा सकती हैं. अभी इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स पर 18 फीसदी की दर से जीएसटी लागू है.
40-50 हजार करोड़ रुपये की जरूरत
समिति ने यह भी माना कि देश में अभी इंश्योरेंस की पहुंच काफी कम है. अंडरइंश्योरेंस की इस स्थिति को दूर करने के लिए 40 से 50 हजार करोड़ रुपये की पूंजी की जरूरत पड़ सकती है. इसके लिए समिति ने सुझाव दिया है कि भारत सरकार की ओर से रिजर्व बैंक 50 साल तक की विभिन्न परिपक्वता अवधि में ऑन-टैप बॉन्ड जारी कर सकता है. ये बॉन्ड बीमा कंपनियों के द्वारा इन्वेस्टमेंट के मौजूदा मैक्सिमम टेन्योर 40 साल के अंगेस्ट इश्यू किए जा सकते हैं.
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