डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) को लेकर हाल के समय में लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है. हालांकि, अभी भी बहुत सारे लोग डिजिटल गोल्ड पर टैक्स (Tax On Digital Gold) के गुणा-गणित से अंजान हैं. फिजिकल गोल्ड की तरह ही डिजिटल गोल्ड पर भी कई प्रकार का टैक्स लगता है. साफ शब्दों में कहें तो सोना डिजिटल हो या फिजिकल, टैक्स की देनदारी बनेगी ही.
ऐसे लगता है कैपिटल गेन टैक्स
डिजिटल वॉल्ट में रखे डिजिटल गोल्ड को 3 साल के भीतर बेचने पर हुए मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स माना जाता है. यह कैपिटल गेन आपकी टोटल इनकम में जुड़ जाता है और टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है. वहीं, 3 साल के बाद बेचने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाता है. इस पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के बाद 20 फीसदी का टैक्स लगता है.
खरीदने पर जीएसटी
वहीं, डिजिटल गोल्ड खरीदने पर 3 फीसदी जीएसटी है. ऐसे में आप गूगल पे (Google Pay), पेटीएम (Paytm) और फोनपे (PhonePe) आदि के जरिए जितनी बार डिजिटल गोल्ड खरीदेंगे, हर बार जीएसटी देना होगा. डिजिटल गोल्ड को ज्वैलरी में बदलने पर मेकिंग चार्ज और डिलिवरी फीस लगती है.
पेपर गोल्ड पर भी टैक्स
डिजिटल गोल्ड और फिजिकल गोल्ड के अलावा सोने में निवेश का एक और तरीका है पेपर गोल्ड. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) को छोड़कर गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड की यूनिट रिडीम करने या बेचने पर फिजिकल गोल्ड की तरह ही टैक्स लगता है.
बॉन्ड के मामले में अलग हैं नियम
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के मामले में टैक्स के नियम अलग हैं. इसमें इन्वेस्टर को सालाना 2.5 फीसदी का ब्याज मिलता है, जो निवेशक की इनकम में जुड़ता है और स्लैब के अनुसार टैक्स लगता है. गोल्ड बॉन्ड का मैच्योरिटी पीरियड 8 साल है. मैच्योरिटी तक रखने के बाद हुए कैपिटल गेन पर कोई टैक्स नहीं लगता है.
निवेशक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को 5 साल बाद प्री-मैच्योर रिडीम करा सकते हैं. अगर 5 से 8 साल के बीच बॉन्ड को बेचते हैं, तो मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा. इस पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के बाद 20 फीसदी टैक्स लगेगा. डीमैट फॉर्म में होने पर, बॉन्ड की स्टॉक एक्सचेंज पर खरीद-बिक्री हो सकती है. इस पर होल्डिंग पीरियड के हिसाब से लॉन्ग और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है.