आकस्मिक जरूरतों को पूरा करने से लेकर कारोबार को आगे बढ़ाने जैसी जरूरतों तक के लिए लोग अमूमन कर्ज लेते हैं. इसके लिए लोग बैंक (Bank) या एनबीएफसी (NBFC) का रुख करते हैं. हालांकि कर्ज लेने और कर्ज की किस्तों (Loan Repayment) को सही से चुकाने में ठीक-ठाक खाई रहती है. अगर कर्ज की किस्तों को ईमानदारी से चुकाने की बात करें तो महिलाएं इस मामले में पुरुषों की तुलना में अधिक ईमानदार होती हैं. कम से कम ट्रांसयूनियन सिबिल का डेटा (TransUnion Cibil Data) तो यही बताता है.


तेजी से कर्ज ले रही महिलाएं


क्रेडिट डेटा फर्म ट्रांसयूनियन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से चंद दिनों पहले कर्ज चुकाने को लेकर दिलचस्प रिपोर्ट जारी की है. आपको बता दें कि हर साल 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. इससे ऐन पहले आई ट्रांसयूनियन की रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों और एनबीएएफसी से लिए गए कर्ज की किस्तों को चुकाने के मामले में महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक ईमानदार हैं. संभवत: यही कारण है कि पिछले पांच सालों के दौरान महिलाओं को कर्ज दिए जाने के मामले तेज गति से बढ़े हैं.


पुरुषों से बेहतर वृद्धि दर


ट्रांसयूनियन सिबिल के अनुसार, पिछले पांच साल के दौरान भारत में कर्ज लेने वाली महिलाओं की संख्या सालाना 15 फीसदी की दर से बढ़ी है, जबकि इनकी तुलना में पुरुषों के मामले में यह वृद्धि दर 11 फीसदी ही है. आंकड़ों के अनुसार, साल 2017 में महिला कर्जदारों की हिस्सेदारी 25 फीसदी थी, जो बढ़कर साल 2022 में 28 फीसदी पर पहुंच गई है.


अभी काफी हैं बाकी संभावनाएं


अभी भारत की कुल 1.4 अरब की अनुमानित आबादी में लगभग 45.4 करोड़ वयस्क महिलाएं शामिल हैं. साल 2022 तक के आंकड़ों के हिसाब से इनमें से लगभग 6.3 करोड़ महिलाओं ने कर्ज लिया हुआ है. महिलाओं के लिए क्रेडिट एक्सेस साल 2017 में 7 फीसदी था, जो बढ़कर साल 2022 में 14 फीसदी हो गया है. ये आंकड़े बताते हैं कि देश में तेजी से महिलाएं वित्तीय समावेश का हिस्सा बन रही हैं और यह भी पता चलता है कि महिलाओं को कर्ज देने के मामले में काफी संभावनाएं हैं.


महिलाओं के अनुकूल कर्ज की जरूरत


ट्रांसयूनियन सिबिल की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हर्षला चांदोरकर इन आंकड़ों पर कहती हैं, भारत के क्रेडिट मार्केट में सक्रिय प्रतिभागियों के रूप में महिला कर्जदारों की संख्या में वृद्धि सरकार के वित्तीय समावेशन के लिए अच्छा है. महिलाओं जैसे पारंपरिक रूप से कम सेवा वाले क्षेत्रों के लिए यह एक बेहतर संकेत है. सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों, आयु-समूहों और भौगोलिक स्थानों के हिसाब से महिलाओं के अनुकूल कर्ज ऑफर करने से उन्हें अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी.