मुंबई: देश में पिछले दिनों पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों के कारण लोगों का बजट हिल गया है. कई राज्यों में पेट्रोल की कीमतें 100 रुपये के पार हो चुकी हैं. हालांकि पिछले दो हफ्तों से देश में पेट्रोल और डीजल के दाम स्थिर बने हुए हैं. इनमें न तो बढ़ोतरी हुई है और न ही इनकी कीमत में गिरावट आई है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में पिछले दो हफ्तों से इजाफा देखने को मिला है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पांच राज्यों में चुनाव के कारण पेट्रोल और डीजल के दामों में कोई बदलाव नहीं आया है?


फरवरी के महीने में जैसे-जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही थी, वैसे-वैसे देश में ईंधन की कीमतों में आग लग रही थी. तेल कंपनियों का कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ने से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं. इसके कारण पेट्रोल और डीजल के दाम देश में अपने अब तक के उच्च स्तर पर आ गए थे. कई जगहों पर पेट्रोल की कीमतें 100 रुपये के पार हो गई थी. हालांकि 27 फरवरी के बाद से पेट्रोल और डीजल के दाम में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला है, जबकि 27 फरवरी से 13 फरवरी के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी हुई है.


वहीं कुछ लोगों का कहना है कि देश में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के मद्देनजर पेट्रोल और डीजल के दाम स्थिर बने हुए हैं. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनावी तारीखों का ऐलान 26 फरवरी को किया गया था. इसके बाद 27 फरवरी को ईंधन के दाम में बदलाव आया और 27 तारीख के बाद से अब तक पेट्रोल और डीजल के दाम न बढ़े और न घटे हैं. हालांकि सरकार पहले कई बार कह चुकी है कि देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय करना उनके हाथ में नहीं है. ऐसे में 27 फरवरी के बाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रूड ऑयल में 6-7 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा हुआ है लेकिन देश में चुनावी तारीखों के ऐलान के बाद से इसका कोई असर नहीं पड़ा और पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर बनने हुए हैं.


कीमतों में बदलाव का क्या है गणित?


ऐसे में पेट्रोल और डीजल के दामों में होने वाले बदलाव की गणित समझना काफी जरूरी हो जाता है. Bexley Advisors के प्रबंध निदेशक उत्कर्ष सिन्हा का कहना है कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कच्चे तेल की कीमतों में और पेट्रोल पंप पर भुगतान करने वाली राशि में कोई सीधा संबंध नहीं है. क्रूड की कीमतें पंप पर प्रति लीटर कीमत के लगभग एक तिहाई का योगदान करती हैं, शेष को कच्चे तेल की रिफाइनिंग की लागत और सरकार के उत्पाद शुल्क के बीच विभाजित किया जाता है.


उन्होंने कहा कि पंप पर ईंधन के मूल्य निर्धारण के लिए भारत एक पैतृक दृष्टिकोण लेकर चलता है, जिसका अर्थ है कि बुरे समय में यह सब्सिडी के माध्यम से लागत को ऑफसेट करने में मदद करता है. वहीं अच्छे समय में, जब कच्चा तेल सस्ता होता है, शॉर्टफॉल के लिए तैयार करता है. यह एक प्रणाली है, जिसने भारतीयों को कीमतों में होने वाले तेज बदलाव से बचाने में मदद की है. उन्होंने कहा कि अगर ईंधन की कीमतों में 10 फीसदी भी बदलाव आता है तो भारत में इसका मुद्दा संसद तक पहुंच जाता है. यह काफी हद तक कीमतों में दीर्घकालिक स्थिरता बनाए रखने के लिए सरकार के जरिए जानबूझकर अपनाए गए दृष्टिकोण के कारण है.


यह भी पढ़ें:
Petrol Diesel Price: 14 दिन से पेट्रोल-डीजल की कीमत स्थिर, क्या अब आएगी कमी, जानें
ईंधन की बढ़ती कीमतों के बीच पेट्रोल-डीजल की मांग में आई गिरावट