नकली दवाइयों और फार्मा प्रोडक्ट की बिक्री रोकने के लिए सरकार अब यूनिक क्विक रेस्पांस यानी क्यूआर रोड का सहारा लेगी. बाजार में नकली दवाइयों और दूसरे फार्मा प्रोडक्ट को न आने देने के लिए क्यूआर कोड लाने पर जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गई है. इसका तरीका तय करने के लिए कमेटी बनाई गई है.


क्यूआर कोड से दवाइयों की ट्रैकिंग की जा सकेगी


क्यूआर कोड दवाइयों की ओरिजिन पता करने के लिए ट्रेकिंग और ट्रैसिंग काम करेगा ताकि मरीजों तक नकली और घटिया क्वालिटी की दवाइयां न पहुंच सके. पीएमओ, नीति आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों की पिछले सप्ताह हुई बैठक सभी दवाइयों और फार्मा प्रोडक्ट पर यूनिक क्यूआर कोड डालने का फैसला किया गया. इस संबंध में सरकार की ओर से जल्द ही एक नोटिफिकेशन जारी होगा.


फार्मा कंपनियों और लॉबिइंग संगठनों ने दवाइयों की ट्रेकिंग और ट्रैसिंग के लिए अलग-अलग निर्देशों के बजाय एक क्यूआर कोड सिस्टम लाने की मांग की थी. दवाइयों के बिजनेस से जुड़ी एक बड़ी कंपनी के अधिकारी ने कहा कि अलग-अलग निर्देश के बजाय एक क्यूआर कोड जारी करना नकली दवाइयों पर नकेल कसने के लिहाज से ज्यादा असरदार साबित होगा.


बल्क ड्रग्स के लिए क्यूआर कोड


भारतीय दवा नियामक ने पिछले साल एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी कर एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इनग्रिडिएंट्स यानी API के लिए क्यूआर कोड अनिवार्य बना दिया था. इसके हिसाब से हर भारत में बनाए गए और आयातित API यानी बल्क ड्रग के लिए क्यूआर कोड अनिवार्य है ताकि इसमें स्टोर जानकारी को सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन के जरिये पढ़ा जा सके. इससे दवाओं की ट्रेकिंग और ट्रेसिंग में मदद मिल सकती है. डेटा में मौजूद जानकारी में API का ब्रांड नाम, मैन्यूफैक्चरर्स का पता, एक्सपायरी या री-टेस्टिंग की तारीख, कंटेनर कोड, मैन्यूफैक्चरिंग लाइसेंस का विवरण होता है. इनके सहारे नकली दवाइयों पर नकेल कसने में काफी मदद मिल सकती है. भारत में बिकने वाली लगभग 20 फीसदी दवाइयां नकली होती हैं.