नई दिल्ली: पंजाब नेशनल बैंक ने एलान किया है कि नीरव मोदी-मेहुल चोकसी धोखाधड़ी में शामिल साढ़े तीन सौ से भी अधिक एलओयू और एफएलसी के लिए साढ़े छह हजार करोड़ रुपये का भुगतान करेगा. इसी के साथ पंजाब नेशनल बैंक के साथ कर्ज नहीं चुकाने वाला यानी डिफॉल्टर जैसा नाम जुड़ने का खतरा खत्म हो गया है.
बैंक ने तय किया है कि धोखाधड़ी के दायरे में शामिल साढ़े तीन सौ ही नहीं, बल्कि सभी एलओयू यानी लेटर ऑफ अंटरटेकिंग और फॉरेन लेटर्स ऑफ क्रेडिट यानी एफएलसी में देनदारी चुकाएगा. ये भुगतान एलओयू और एफएलसी की मियाद की तारीख के हिसाब से होगा. इसी सिलसिले में सबसे पहले 352 एलओयू और एफएलसी को चुना गया है जिसकी मियाद 31 मार्च को खत्म हो रही है. इनके बदले में जितना कर्ज दिया गया, उसका भुगतान पीएनबी सात बैंकों को करेगा.
ध्यान रहे कि एलओयू और एफएलसी एक तरह की गारंटी है जिसके बदले में विदेश में स्थित किसी दूसरे बैंक से कर्ज लिया जा सकता है. अगर जिसके नाम से एलओयू या एफएलसी जारी किया गया है, यदि वो तय समय तक कर्ज नहीं चुकाता है तो उसे अदा करने की जिम्मेदारी एलओयू या एफएलसी जारी करने वाले बैंक पर आ जाती है. नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के साथ उनकी कंपनियों ने पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई स्थित शाखा से गलत तरीके से एलओयू और एफएलसी हासिल किए और उसके जरिए करीब 14 हजार करोड़ रुपये की चपत लगायी.
पंजाब नेशनल बैंक का साफ तौर पर कहना है कि वो बैंकिंग व्यवस्था में विश्वास और स्थिरता बनाए रखना चाहते है और ताजा फैसला उसी प्रयास का एक हिस्सा है. धोखाधड़ी के दायरे में शामिल एलओयू और एफएलसी को लेकर विभिन्न बैंकों के साथ विवाद को पीएनबी खत्म करना चाहता है और निदेशक बोर्ड के ताजा फैसले से इस काम में मदद मिलेगी. पीएनबी का ये भी कहना है कि बकाये के भुगतान के लिए संसाधनों की उसके पास कोई कमी नहीं है.
रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक, अगर किसी वजह से एलओयू के बदले मे लिया कर्ज तय तारीख तक वापस नहीं आता है तो संबंधित बैंक को वो रकम फंसे कर्ज यानी एनपीए में डालना होता है. साथ ही बकायेदार का नाम डिफॉल्टर की लिस्ट में शामिल करना होता है. नीरव मोदी-मेहुल चोकसी मामले में यूनियन बैंक ने दावा किया था कि एलओयू के बदले में जारी 1000 करोड़ रुपये के कर्ज की अदायगी 31 मार्च तक नहीं होती है तो उसे वो रकम एनपीए करार देना होगा. साथ ही चूंकि नीरव मोदी और मेहुल चोक्सी गायब हैं तो बकायेदार का नाम पीएनबी हो जाएगा. दूसरे शब्दों में 31 मार्च तक पैसा नहीं मिलने की सुरत में पीएनबी के डिफॉल्टर बनने का खतरा था. बैंकिंग के इतिहास में ऐसा पहली बार होता जब कोई बैंक ही डिफॉल्टर करार दिया जाता. फिलहाल बोर्ड के ताजा फैसले से ये आशंका खत्म हो गयी है.
स्विफ्ट व्यवस्था को दुरुस्त करना
बोर्ड की बैठक में कोर बैंकिंग सॉल्यूशन यानी सीबीएस को स्विफ्ट से जोड़े जाने की प्रगति की भी समीक्षा की गयी. बोर्ड की बैठक में ये जानकारी दी गयी कि पहला चरण 3 अप्रैल तक पूरा हो जाएगा, जबकि पूरे बैंक में 30 अप्रैल के पहले लागू कर दिया जाएगा. रिजर्व बैंक ने भी इस काम के लिए 30 अप्रैल की समय सीमा रखी है. स्विफ्ट यानी Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication एक ऐसी व्यवस्था है जिसके जरिए दुनिया भर में वित्तीय संस्थाएं लेन-देन के बारे में जानकारी हासिल करती है या भेजती हैं. ये एक सुरक्षित माध्यम है और हर वित्तीय संस्था के लिए एक विशिष्ट स्विफ्ट कोड होता है.