केंद्र सरकार की 6 लाख करोड़ रुपये की national monetisation pipeline (NMP) में दूसरा सबसे बड़ा कंट्रीब्यूटर रेलवे है. लेकिन रेलवे एक बार फिर monetisation में भारी भरकम चूक करने वाला है.


वित्त वर्ष 2022-23 में रेलवे को monetisation से 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य दिया गया था. दिसंबर महीना चल रहा है, वित्त वर्ष में महज साढ़े 3 महीने बचे हैं. रेलवे अब तक 6 प्रतिशत लक्ष्य ही हासिल कर पाया है. इसकी प्रमुख वजह स्टेशन रिडेवलपमेंट प्लान में बदलाव को माना जा रहा है.


Monetisation से अब तक कितनी कमाई हुई


वित्त वर्ष 2022-23 के शुरुआती 7 महीने में रेलवे ने संपत्ति बेचकर या उसे पट्टे पर देकर धन कमाने की योजना के तहत महज 1,820 करोड़ रुपये कमाए हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक इस वित्त वर्ष के अंत तक 3,200 करोड़ रुपये के monetisation का प्रस्ताव है. यानी रेलवे कुल मिलाकर लक्ष्य से 85 प्रतिशत की भारी भरकम चूक करने वाला है.


Monetisation की क्या है योजना


सरकार ने सरकारी संपत्तियों को बिजनेसमैन को बेचकर या उसे पट्टे पर देकर धन कमाने की योजना बनाई है. इस योजना के तहत सड़कें भी बिक रही हैं, बैंक भी बिक रहे हैं. सार्वजनिक उपक्रम भी बिक रहे हैं. इसी क्रम में रेलवे को भी अपनी जमीन जायदाद, कॉलोनियां, रेलों, रेलवे स्टेशनों को बेचकर या पट्टे पर देकर धन जुटाना है. रेलवे भरपूर कोशिश कर रही है कि वह सरकार की इस योजना में साथ दे, लेकिन लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही है.


इस साल का कितना Monetisation लक्ष्य


रेल मंत्रालय ने वित्त वर्ष 23 की शुरुआत में monetisation से 57,000 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा था. लेकिन वित्त  वर्ष 22 में रेलवे अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया. इसे देखते हुए 57,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य घटाकर 30,000 करोड़ रुपये कर दिया गया. लेकिन अब जो हालात बन रहे हैं, उसमें मार्च 23 तक महज 3,200 करोड़ रुपये की संपत्ति बिक पाने या उन्हें पट्टे पर दिए जाने की संभावना नजर आ रही है.


क्यों हो रही है Monetisation में चूक


रेलवे ने चूक की सबसे बड़ी वजह स्टेशनों के विकास की नीति में बदलाव को माना जा रहा है. रेलवे ने 4 साल में monetisation से 1.52 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई, जिसमें से करीब 50 प्रतिशत धन Station redevelopment से आना था. रेलवे ने पुनर्विकास की योजना को बदलकर engineering procurement construction (EPC) मॉडल पर कर दिया,  जिन्हें public private partnership (PPP) के मॉडल पर बनाया जाना था. रेलवे ने पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) जैसे प्रमुख स्टेशनों को डेवलप करने के लिए बोली आमंत्रित की थी। लेकिन मामला नहीं बना. बाद में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट के फैसले को बताते हुए कहा था कि रेलवे पब्लिक प्रॉपर्टी है, इसलिए सरकार अपने पैसे से इसका डेवलपमेंट करेगी. 


अब बेचने के लिए क्या बचा


ऐसा नहीं कि स्टेशन के बाद अब बेचने की कार्रवाई सरकार बंद करने जा रही है. रेल की जिन संपत्तियों के monetisation से धन जुटाने की योजना है, उसमें ट्रेन, ट्रैक ओवरहेड इक्विपमेंट (ओएचई), गुड्स शेड, पहाड़ी रेलें और स्टेडियम शामिल है। अब मंत्रालय ने कहा है कि इन संपत्तियों का ट्रांजैक्शन जल्द से जल्द करके उन्हें निपटाया जाए.


वित्त वर्ष 23 में रेलवे कॉलोनियों और उसकी जमीन का monetisation होना है. सरकार ने रेलवे की जमीन के औद्योगिक इस्तेमाल के लिए भूमि लाइसेंस शुल्क (एलएलएफ) कम कर दिया है, जिससे उसे प्राइवेट कंपनियों को सस्ते में दिया जा सके और वे इसे खरीदने में दिलचस्पी लें. साथ ही छोटे स्टेशनों को पीपीपी मॉडल पर विकसित करने की योजना है. 16 स्टेशनों की बोली पर काम चल रहा है और 40 अन्य को चिह्नित किया गया है.


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