रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है भारतीय बैंकों में सुधार के लिए ‘ गहरी सर्जरी’ की जरूरत है. रिजर्व बैंक से जुड़े रहे दोनों अर्थशास्त्री और बैंकरों ने ‘बैड बैंक’ का गठन करने, वित्त मंत्रालय के फाइनेंशियल सर्विसेज विभाग को बंद करने और सार्वजनिक बैंक में सरकारी हिस्सेदारी 50 फीसदी से कम करने की सलाह दी है. बैंकिंग सेक्टर में सुधार के लिए उन्होंने कुछ सार्वजनिक बैंकों के री-प्राइवेटाइजेशन की सलाह दी है.


कॉरपोरेट घरानों को बैंकों की हिस्सेदारी से दूर रखने की सलाह
सोमवार को जारी पेपर “ Indian banks : A time to reform?’’  में राजन और आचार्य ने कहा है कि सार्वजनिक सेक्टर के बैंकों के मालिकाना हक में बदलाव की दिशा में सबसे पहले सरकारी बैंकों से शुरुआत करनी चाहिए. सरकार को इसमें अपनी हिस्सेदारी घटा कर 50 फीसदी से कम करने जरूरत है. साथ ही उसे बैंकिंग ऑपरेशन से एक दूरी बनाने होगी और उसके गवर्नेंस में सुधार के लिए रास्ता तैयार करना होगा. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुनिंदा बैंकों के री-प्राइवेटाइजेशन की जरूरत है. इसे सावधानीपूर्वक करना होगा. इनमें उन निवेशकों को लाने की जरूरत है, जिनके पास वित्तीय और टेक्नोलॉजी अनुभव दोनों हो. उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट घरानों को बैंकों की हिस्सेदारी से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि उनके साथ हितों के संघर्ष की समस्या होती है.


 वित्त मंत्रालय के फाइनेंशियल सर्विसेज डिपार्टमेंट को बंद करने की सिफारिश
राजन और आचार्य के पेपर में वित्त मंत्रालय के फाइनेंशियल सर्विसेज डिपार्टमेंट को बंद करने की सिफारिश की गई है. उनका कहना है कि बैंक बोर्ड और मैनेजमेंट को स्वतंत्रता देने के लिए यह जरूरी है. फंसे हुए कर्जों के मामले में उनका कहना है कि प्राइवेट एसेट मैनेजमेंट और नेशनल एसेट मैनेजमेंट ‘’ बैड बैंक” को फंसे हुए कर्ज की खरीदारी में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के समांतर रखा जाना चाहिए. जहां सरकार का हस्तक्षेप जरूरी नहीं है वहां प्राइवेट सेक्टर के बैंक इकट्ठा होकर लोन की रिकवरी कर सकते हैं.


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