(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Raksha Bandhan : रक्षाबंधन पर 7 हजार करोड़ का हुआ राखियों का कारोबार, चाइनीज राखी की डिमांड ख़त्म
Confederation of All India Traders ने भारतीय त्यौहारों के गौरवशाली अतीत को हासिल करने के लिए वैदिक राखी (Vaidik Rakhi) का उपयोग हुआ हैं.
Raksha Bandhan Chaines Rakhi : देशभर में रक्षा बंधन के त्यौहार पर भारतीय राखियों (Indian Rakhi) की जबरदस्त कारोबार हुआ है. वही लोगों ने इस बार किसी भी प्रकार की चीनी राखी (Chaines Rakhi) को नहीं ख़रीदा है. इस बार भारतीय राखी के आगे चीनी राखी की कोई डिमांड नहीं रही. पूरे देश में इस बार राखी के त्यौहार पर लगभग 7 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ है.
वैदिक राखी की रही डिमांड
कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (Confederation of All India Traders) CAIT ने भारतीय त्यौहारों के गौरवशाली अतीत को हासिल करने के लिए वैदिक राखी (Vaidik Rakhi) का उपयोग हुआ. कैट ने कहा कि लोगों के इस बदलते रूख से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि धीरे-धीरे भारत के लोग अपने दैनिक जीवन में चीनी सामानों का उपयोग अब कम कर रहे हैं.
कैट ने बताया, कैसा रहा कारोबार
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल का कहना है कि भारत का हर त्यौहार देश की पुरानी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा हुआ है जो तेजी से पश्चिमीकरण के कारण से बहुत नष्ट हो गया है और इसलिए भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को फिर से स्थापित करने की जरूरत है. चीन पर भारत की निर्भरता को कम करके भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनाना बेहद जरूरी है. वह समय चला गया है जब भारतीय लोग चीनी राखी के डिजाइन और लागत प्रभावी होने के कारण उसको खरीदने के लिए उत्सुक रहते थे. समय और मानसिकता के परिवर्तन के साथ लोग अब स्थानीय उत्पादित राखी को ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
रेशम के कपड़े से बनी राखी
भरतिया और खंडेलवाल दोनों ने कहा कि कैट के तत्वावधान में पूरे देश में व्यापारी संगठनों ने इस वर्ष वैदिक रक्षा राखी की तैयारी पर अधिक जोर दिया जिसमें अनिवार्य रूप से पांच चीजें हैं जिनकी अपनी प्रासंगिकता है. जिसमें दूर्वा यानी घास, अक्षत यानी चावल, केसर, चंदन और सरसों के दाने. इन्हें रेशम के कपड़े में सिलकर कलावा से पिरोया जा सकता है और इस प्रकार वैदिक राखी तैयार की जा सकती है.