Noel Tata: नोएल टाटा (Noel Tata) को हाल ही में टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) का चेयरमैन नियुक्त किया गया है. यह जिम्मेदारी उनके दिवंगत भाई रतन टाटा (Ratan Tata) संभाल रहे थे. रतन टाटा के टाटा संस (Tata Sons) की जिम्मेदारी छोड़ने के बाद नोएल टाटा का नाम ही टाटा ग्रुप (Tata Group) को कंट्रोल करने वाली इस कंपनी के चेयरमैन के पद के लिए सबसे आगे चल रहा था. मगर, अचानक उनके साले सायरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) को टाटा संस की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. इसकी वजह रतन टाटा ही थे. उन्हें ऐसा लगता था कि टाटा संस को संभालने के पहले नोएल टाटा को और अनुभव की जरूरत है. 


नोएल टाटा को और कठिन जिम्मेदारियां देना चाहते थे रतन टाटा 


थॉमस मैथ्यू (Thomas Mathew) द्वारा रतन टाटा पर लिखी किताब (Ratan Tata A Life) में दावा किया गया है कि उन्हें ऐसा लगता था कि नोएल टाटा उस समय टाटा संस की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं थे. रतन टाटा सोचते थे कि अभी नोएल टाटा को और कठिन जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए. उन्होंने अपना उत्तराधिकारी चुनने के लिए गठित कमिटी से भी खुद को इसलिए दूर रखा था ताकि बिना किसी दबाव के टाटा संस के नए चेयरमैन का चुनाव किया जा सके. हालांकि, बाद में उन्हें पछतावा हुआ और उन्होंने खुद ही सायरस मिस्त्री से यह जिम्मेदारी छीनकर नटराजन चंद्रशेखरन (Natarajan Chandrasekaran) को सौंप दी थी.


उत्तराधिकारी सिर्फ टैलेंट और सोच के दम पर चाहते थे चुनना 


नोएल टाटा अभी 165 अरब डॉलर के टाटा ग्रुप को कंट्रोल करने वाले टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन तो बन गए हैं. मगर, टाटा संस की जिम्मेदारी अभी भी नटराजन चंद्रशेखरन के पास ही है. वह साल 2011 में टाटा संस के चेयरमैन बन सकते थे. मगर, रतन टाटा की वजह से यह मौका उनके हाथ से निकल गया. उस दौरान पारसी समुदाय और कंपनी के अंदर से भी रतन टाटा के ऊपर दबाव था कि नोएल टाटा को चुना जाए. इसके चलते वह उत्तराधिकारी चुनने वाली समिति में शामिल ही नहीं हुए. वह कहते थे कि किसी भी आदमी को चुनने का एकमात्र रास्ता उसका टैलेंट और सोच ही हो सकती है.


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