Recession In Global Economy: दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने मॉनिटरी पॉलिसी में कड़ा रूख अपनाते हुए जिस प्रकार कर्ज महंगा किया उसका खामियाजा वैश्विक अर्थव्यवस्था को नए वर्ष 2023 में उठाना पड़ सकता है. आरबीआई ने ये बातें अपने बुलेटिन में कही है. आरबीआई के मुताबिक करेंसी में गिरावट, पूंजी के देश से बाहर जाने के साथ आर्थिक विकास दर में गिरावट और कमरतोड़ महंगाई का बड़ा खामियाजा उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों को उठाना पड़ सकता है क्योंकि वे सबसे ज्यादा संवेदनशील रहने वाले हैं. 


आरबीआई ने अपने बुलेटिन में कहा है कि कर्ज के डिफॉल्ट में बढ़ोतरी और अमेरिकी डॉलर में मजबूती के चलते संकट बड़ा होता जा रहा है. आरबीआई का मानना है कि 2024 में हल्की रिकवरी का अनुमान है. बुलेटिन के मुताबिक एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाएं दुनिया के विकास का इंजन बनेंगी. और सामूहिक रूप से 2023 में वैश्विक विकास के करीब तीन-चौथाई और 2024 में लगभग तीन-पांचवां हिस्सा एशिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का रहने वाला है. 


दरअसल अमेरिकी फेडरल रिजर्व से लेकर बैंक ऑफ इंग्लैंड समेत कई विकसित देशों के सेंट्रल बैंक बढ़ती महंगाई पर नकेल कसने के लिए ब्याज दरें बढ़ाते जा रहे हैं. जिसमें आरबीआई भी पीछे नहीं हैं. 


आरबीआई ने 2022 में महंगाई दर में जबरदस्त उछाल के बाद रेपो रेट में 2.25 की बढ़ोतरी कर उसे 4 फीसदी से 6.25 फीसदी कर दिया है. जिसके बाद कमर्शियल बैंकों ने सभी प्रकार के कर्ज महंगा कर दिया है. रिटेल लोन से लेकर कॉरपोरेट लोन महंगा हो चुका है. 


आरबीआई बुलेटिन में उसके विशेषज्ञ लेख भारत और दुनिया के आर्थिक हालात को लेकर लेख लिखते हैं जिसे हर महीने आरबीआई जारी करती है. 


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