नई दिल्लीः नोटबंदी से परेशान लोगों को आरबीआई ने भी निराश किया है. आरबीआई ने अपनी नई क्रेडिट पॉलिसी से दरों में कटौती की उम्मीद लगाए लोगों झटका दिया है. आरबीआई ने साल 2016 की आखिरी क्रेडिट पॉलिसी में दरों में किसी भी किस्म कटौती का फैसला नहीं किया है. इससे ईएमआई कम होने के आस लगाए लोगों को बड़ा धक्का लगा है.
अपनी नई क्रेडिट पॉलिसी का एलान करते हुए आरबीआई ने रेपो रेट 6.25 फीसदी बरकरार रखा है. यानी इसका सीधा मतलब हुआ ये कि मौजूदा ब्याज दरों में कोई राहत नहीं मिलेगी. इसके साथ ही आरबीआई ने विकास दर के अनुमान को घटाया है. नोटबंदी से पहले 7.6 फीसदी विकास दर का अनुमान था जिसे घटाकर अब 7.1 फीसदी कर दिया गया है.
क्या हैं बड़ी बातें:
- चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में खुदरा महंगाई 5 फीसदी रहेगी
- रिजर्व बैंक ने 2016-17 की आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.6 फीसदी से घटाकर 7.1 फीसदी किया
- पुराने नोटों को हटाने से तीसरी तिमाही में महंगाई में कुछ समय के लिये 0.10 से 0.15 फीसदी तक कमी आ सकती है
- क्रेडिट पॉलिसी का रुख नरम बना रहेगा
- क्रेडिट पॉलिसी कमेटी के सभी 6 सदस्यों ने दरों में बरकरार बनाये रखने के पक्ष में मत दिया
- नोटबंदी से खुदरा कारोबार, होटल, रेस्त्रां और परिवहन क्षेत्र में कुछ समय के लिए कारोबार प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि इनमें ज्यादातर लेनदेन नकदी में होता है
रेपो रेट का असर आप पर कैसे पड़ता है ये समझें
बैंक एक से तीन दिन के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं और इस कर्ज पर रिजर्व बैंक जिस दर से ब्याज वसूलता है, उसे रेपो रेट कहते हैं. अगर रेपो रेट कम होगा तो बैंक को कम ब्याज दर देनी पड़ेगी और इसका फायदा बैंक लोन की ब्याज दरें घटाकर आम आदमी को देता है. वहीं रिवर्स रेपो पर ही बैंक अपना पैसा आरबीआई के पास रखते हैं. यदि आरबीआई रेट कट करता है तो तो बैंकों को कर्ज की दरों में भी कटौती करनी होगी. ज्यादा से ज्यादा बैंक ब्याज दरों में कटौती करेंगे तो ग्राहकों की ईएमआई घटेगी. जनता के लिए होम और ऑटो लोन का सस्ता होना काफी राहत देने वाला फैसला होगा. जबकि उद्योग जगत के लिए कर्ज की दर में कमी उसकी विस्तार संबंधी लागत घटा देगी.
साल 2016 की अब तक की क्रेडिट पॉलिसी में क्या-क्या हुआ
4 अक्टूबर 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
नए आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल ने नीतिगत दरों में 0.25 फीसदी की कटौती का एलान किया. इस तरह, 0.25 फीसदी की कटौती के बाद रेपो रेट 6.5 फीसदी से घटकर 6.25 फीसदी हो गया. वहीं रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी से घटकर 5.75 फीसदी हुआ. सीआरआर 4 फीसदी पर कायम रखा. ऊर्जित पटेल के गवर्नर बनने और मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी बनने के बाद के बाद ये पहली क्रेडिट पॉलिसी थी.
9 अगस्त 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
आरबीआई ने 9 अगस्त 2016 की क्रेडिट पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किया. रेपो रेट बिना बदलाव के 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी रहा. सीआरआर 4 फीसदी पर कायम है. आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की ये आखिरी क्रेडिट पॉलिसी थी वो 4 सितंबर को सेवा से अलग हुए.
7 जून 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
आरबीआई ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया जिससे रेपो रेट 6.5 फीसदी जबकि रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी पर रहा. सीआरआर में कोई बदलाव ना करते हुए इसे 4 फीसदी पर कायम रखा. एमएसएफ यानि मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी दर भी 7 फीसदी पर बरकरार रही.
5 अप्रैल 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
आरबीआई ने रेपो रेट 0.25 फीसदी घटाया जिससे रेपो रेट घटकर 6.5 फीसदी हुआ जो जनवरी 2011 के बाद सबसे निचला स्तर था. इसी पॉलिसी में आरबीआई ने अनोखा फैसला लिया कि रेपो रेट और रिवर्स रेपो के बीच फर्क सिर्फ 0.5 फीसदी का रहेगा. इसके तहत रिवर्स रेपो रेट 0.25 फीसदी बढ़कर 6 फीसदी हो गया था. आरबीआई ने एमएसएफ दर 0.75 फीसदी घटाकर 7 फीसदी की और सीआरआर 4 फीसदी पर बरकरार रखा.
2 फरवरी 2016 की क्रेडिट पॉलिसी
साल 2016 की पहली क्रेडिट पॉलिसी में आरबीआई ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया था जिसके बाद रेपो रेट 6.75 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट भी 5.75 फीसदी पर बरकरार रहा. सीआरआर भी 4 फीसदी पर ही बरकरार रहा. मार्जिनल स्टैंडिंग फैसलिटी 7.75 फीसदी पर बरकरार रखी गई.
हालांकि इस बार रेपो रेट में कटौती का फायदा सीधे सीधे आम लोगों को मिलेगा इस पर भी सस्पेंस है, क्योंकि रिजर्व बैंक के एक आदेश से बैंकों के पास नोटबंदी के बाद जमा हुई नकदी कम हो गई है. रिजर्व बैंक ने 16 सितम्बर से 11 नवम्बर के दौरान डिपॉजिट में हुई पूरी बढ़ोतरी को कैश रिजर्व रेशियो यानी CRR के तौर पर रखने को कहा है. इस आदेश के चलते बैंकों की सवा तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रकम रिजर्व बैंक के पास जमा हो गई है. जिसपर उन्हें कोई ब्याज भी नहीं मिलेगा. बैंक कह रहे हैं कि CRR पर रिजर्व बैंक के पिछले आदेश की समीक्षा के बाद ही ब्याज दर में कमी का रास्ता खुल सकता है.
नीतिगत ब्याज दर वो दर है जिसपर रिजर्व बैंक 1 से तीन दिनों के लिए बैंकों को कर्ज देते हैं. आम तौर पर नीतिगत ब्याज दर में की गयी कटौती का पूरा-पूरा फायदा आम बैंक ग्राहकों तक नहीं पहुंचाते. पूरा-पूरा फायदा नहीं पहुचाने के पीछे आम बैंकों की ये दलील होती है कि आऱबीआई से पैसे बहुत ही थोड़े समय के लिए मिलते हैं, जबकि बैंक जो जमा जुटाते हैं या कर्ज देते हैं वो लम्बे समये के लिए होता है. दोनों ही मामलों में लेनदारी-देनदारी अलग-अलग है. यही वजह है कि जनवरी 2015 से लेकर रेपो रेट में कुल मिलाकर 1.75 फीसदी यानी 175 बेसिस प्वाइंट की कटौती की जा चुकी है लेकिन बैंकों ने कर्ज पर ब्याज दरों में 70 बेसिस प्वाइंट्स की ही कटौती की है.