नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फंसे कर्ज के निपटाने के लिए बनाए गए नियमों में बड़ा बदलाव किया है और इनके जरिए बैंकों के एनपीए पर और सख्ती की है. इन नियमों को इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के अनुरूप बनाया गया है. अधिकारियों का ऐसा मानना है कि इससे बैंकिंग सिस्टम में फंसे कर्ज की समस्या को तुरंत सुलझाने में मदद मिलेगी.


रिजर्व बैंक ने संशोधित रुपरेखा में दबाव वाली परिसंपत्तियों की ‘जल्द पहचान’ करने, निपटान योजना के समय से पालन करने और उस अवधि में बैंकों के विफल रहने पर उन पर जुर्माना लगाने के लिए विशेष नियम बनाए हैं.


रिजर्व बैंक के लेटेस्ट नोटिफिकेशन के अनुसार संशोधित रुपरेखा के साथ ही उसने फंसे कर्ज से निपटने की मौजूदा व्यवस्था को वापस ले लिया है. इनमें कंपनियों की लोन रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम, स्ट्रेटेजिक लोन रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम और दबाव वाली संपत्ति को टिकाऊ स्वरूप देने की योजनायें शामिल हैं जिन्हें वापस ले लिया गया है. लोन के दबाव वाले एसेट्स के निपटान के लिए बैंकों के संयुक्त मंच (जॉइंट लेंडर्स फोरम-जेएलएफ) की सांस्थानिक व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया है.


आरबीआई ने बैंकों को ये भी कहा है कि वे चुनिंदा डिफॉलटर्स के आंकड़ों को हरेक शुक्रवार को आरबीआई के साथ साझा करें और बैंक अगर तय समयसीमा में खातों की वास्तविक स्थिति को नहीं बता पाते हैं तो उन्हें कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए.


रिजर्व बैंक के इस कदम पर वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने कहा कि केन्द्रीय बैंक की कल रात जारी यह नोटिफिकेशन कर्ज चुकाने में असफल कर्जदारों को ‘नींद से जगाने’ वाला है. उन्होंने कहा सरकार एक बार में ही फंसे कर्ज का निपटान करने के लिए प्रतिबद्ध है, वह इसे लटकाना नहीं चाहती है. ऐसे कर्ज के निपटान के लिये नयी व्यवस्था ज्यादा पारदर्शी है. सरकार ने बैंकों की एनपीए की समस्या से निपटने के पिछले साल रिजर्व बैंक को ज्यादा अधिकार दिये थे.


रिजर्व बैंक की अधिसूचना में कहा गया है कि इस तरह के सभी खातों का समाधान अब नयी व्यवस्था के तहत ही किया जाएगा. इसमें वे खाते भी शामिल हैं जहां पुरानी व्यवस्था के तहत प्रक्रिया तो शुरु हो गई है लेकिन अभी तक उनमें निपटान शुरु नहीं हुआ है. रिजर्व बैंक के फैसले का बैंकों के प्रोविजनिंग करने के नियमों पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं होगा.