अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने बुधवार को ब्याज दरें (Interest Rates) 50 बेसिस प्वॉइंट कम करने का ऐलान किया. इसके साथ ही भारत में भी ब्याज दरें कम होने की उम्मीद तेज हो गई है. अब गेंद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के पाले में आ गई है. ऐसा माना जा रहा था कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) भी ब्याज दरों को घटाने से पहले फेड रिजर्व के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि, फेड रिजर्व द्वारा आगे भी दो साल तक ब्याज दरों में और कटौती के संकेत से गवर्नर शक्तिकांत दास के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है.
भारत जैसे उभरते बाजारों में ज्यादा पूंजी आने लगेगी
पूरी दुनिया में ब्याज दरों में कटौती का चक्र अगर शुरू हो जाता है तो भारत जैसे उभरते बाजारों में ज्यादा से ज्यादा पूंजी (Capital Inflows) आने लगेगी. इसकी वजह से आरबीआई के सामने करेंसी मैनेजमेंट की चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी. ऐसा माना जा रहा था कि फेड रिजर्व ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वॉइंट की कटौती कर सकता है. मगर, उसने 50 बेसिस प्वॉइंट की कटौती कर सबको हैरत में डाल दिया है. अब अमेरिका में ब्याज दरें 4.75 फीसदी से 5 फीसदी हो गई हैं. उसकी देखा-देखी अन्य सेंट्रल बैंक भी ऐसे फैसले ले सकते हैं. बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इसके चलते आने वाले महीनों में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की माथापच्ची होना लगभग तय है. भारत में फिलहाल आरबीआई का रेपो रेट (RBI Repo Rate) 6.5 फीसदी है.
आरबीआई को मॉनेटरी पॉलिसी में करने पड़ सकते हैं बदलाव
यूरोपियन सेंट्रल बैंक (European Central Bank) पहले ही इस साल अपनी ब्याज दरों में दो बार कटौती कर चुका है. बैंक ऑफ कनाडा (Bank of Canada) ने भी हाल ही में ब्याज दर 25 बेसिस प्वॉइंट घटाई थी. आगे इसमें और कटौती की संभावना है. बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) ने भी ब्याज दरें कम कर दी हैं. अब फेड रिजर्व के फैसले से अन्य सेंट्रल बैंक भी इसी नक्शेकदम पर चल सकते हैं. आरबीआई को भी अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव करने पड़ सकते हैं.
महंगाई दर और रुपये को रखना होगा कंट्रोल में
फेड रिजर्व ने इस साल के अंत तक एक और कटौती के संकेत दिए हैं. साथ ही अनुमान लगाया जा रहा है कि 2026 तक ब्याज दरें वहां कम होती रहेंगी. शक्तिकांत दास की बड़ी चिंता यही बन सकता है. इससे आरबीआई को महंगाई कंट्रोल में रखने में समस्या आ सकती है. आरबीआई ने महंगाई दर के लिए टार्गेट 4 फीसदी रखा हुआ है. हाई रिटर्न की चाह में भारत आने वाले ग्लोबल इनवेस्टर पर भी उसे नजर रखनी होगी. हालांकि, इससे स्टॉक मार्केट और डेट मार्केट पर पॉजिटिव असर होगा. साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य बढ़ने से एक्सपोर्ट पर भी असर पड़ सकता है.
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