1 अक्टूबर को मौद्रिक नीति समीक्षा के ऐलान से पहले आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक शुरू हो चुकी है. इकनॉमी के स्टेकहोल्डर्स के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आरबीआई बढ़ती खुदरा महंगाई के बावजूद रेपो रेट में कटौती करेगा या फिर ब्याज दरों को यूं ही रहने देगा.
संक्रमण और महंगाई की दोहरी मार
अर्थव्यवस्था कोविड-19 संक्रमण के बुरे असर से जूझ रही है. सरकार की ओर से 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का असर नहीं दिख रहा और अभी भी संक्रमण में इजाफे की वजह से राज्य थोड़े-थोड़े अंतराल पर लॉकडाउन लगा रहे हैं, ऐसे में क्या आरबीआई ब्याज दरों में कटौती कर सकता है. आरबीआई के इस विकल्प के सामने सबसे बड़ी चुनौती है बढ़ती हुई खुदरा महंगाई, जो आरबीआई के 6 फीसदी के टॉलरेंस लेवल से ऊपर पहुंच चुकी है.
दूसरी ओर, पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है. मौद्रिक नीति कमेटी जनवरी 27 के बाद से रेपो रेट में 115 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर चुका है ताकि कोरोना संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित इकनॉमी को रफ्तार दी जा सके. माना जा रहा है कि कमेटी अब और रेट कटौती की इजाजत नहीं देगी. इसके बजाय वह महंगाई घटने का इंतजार करेगी. पिछली बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट में कोई कटौती नहीं की थी.
ग्रोथ पर मंहगाई का असर
इकनॉमी पर कोरोनावायरस संक्रमण का असर तो है ही, महंगाई भी इसके लिए मुश्किल खड़ी कर रही है. लिहाजा, आरबीआई रेपो रेट पर कोई भी फैसला लेने से पहले थोड़ा इंतजार करना चाहेगा. विश्लेषकों का कहना है कि संक्रमण में इजाफा होता जा रहा है.फिलहाल ब्याज दरें सस्ती होने के बावजूद क्रेडिट ऑफटेक में तेजी नहीं दिख रही है. इससे साफ हो जाता है कि इकनॉमी में डिमांड की कमी है.
खुदरा महंगाई दर आरबीआई के टॉलरेंस लेवल 6 फीसदी से ज्यादा है. खाने-पीने की चीजों खास कर सब्जी और फल की कीमतें बढ़ने से खुदरा महंगाई बढ़ रही है. आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुआई में मौद्रिक नीति कमेटी की बैठक 30 सितंबर से शुरू होगी.
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