RBI MPC Meeting: रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को रखा स्थिर, महंगाई को बताया अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख चुनौती
RBI MPC Repo Rate: यह रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की चालू वित्त वर्ष में चौथी बैठक हुई है. ब्याज दरों पर फैसला लेने वाली एमपीसी की यह बैठक हर दो महीने में होती है...
रिजर्व बैंक ने महंगाई, अर्थव्यवस्था और वैश्विक हालातों को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर से ब्याज दरों को स्थिर रखने का फैसला लिया है. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एमपीसी की अहम तीन दिवसीय बैठक के बाद आज शुक्रवार को बताया कि मुख्य नीतिगत दर रेपो रेट को 6.50 फीसदी पर बरकरार रखने का फैसला लिया गया है. इस तरह पिछले आठ महीने से रेपो रेट को स्थिर रखने का क्रम इस बार भी बना रहा है.
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि महंगाई अभी भी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बनी हुई है.
महंगाई ने किया था आरबीआई को मजबूर
कोरोना महामारी के बाद आर्थिक वृद्धि को सहारा देने के लिए रिजर्व बैंक ने लगातार रेपो रेट को कम किया था. उस समय मुख्य नीतिगत ब्याज दर को घटाकर 4 फीसदी कर दिया गया था. लंबे समय तक रेपो रेट 4 फीसदी बनी रही थी. हालांकि बाद में रिजर्व बैंक को महंगाई के बेकाबू हो जाने और अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व समेत तमाम सेंट्रल बैंकों के द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रेपो रेट को बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा था.
मई 2022 से शुरू हुई थी बढ़ोतरी
रिजर्व बैंक ने इसी शुरुआत पिछले साल मई में की थी. तब मई 2022 में सेंट्रल बैंक को एमपीसी की आपात बैठक बुलाने की जरूरत पड़ गई थी. उस बैठक में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को एक झटके में 40 बेसिस पॉइंट यानी 0.40 फीसदी बढ़ा दिया था. उसके बाद लगातार 5 बैठकों में रेपो रेट में बढ़ोतरी की गई. रेपो रेट बढ़ाने का यह सिलसिला फरवरी 2023 तक चला. मई 2022 से फरवरी 2023 के दौरान रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 2.50 फीसदी की बढ़ोतरी की.
अभी इतनी है मुख्य नीतिगत ब्याज दर
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों पर फैसला लेने के लिए हर दो महीने पर बैठक करती है. यह चालू वित्त वर्ष की चौथी बैठक हुई है. तीन दिनों तक चलने वाली यह बैठक 4 अक्टूबर बुधवार को शुरू हुई थी. इससे पहले रिजर्व बैंक ने अप्रैल, जून और अगस्त महीनों में हुई एमपीसी बैठक में भी ब्याज दरों को स्थिर रखने का फैसला लिया था. दरअसल रेट को फरवरी 2023 के बाद से नहीं बढ़ाया गया है. अभी रिजर्व बैंक की रेपो रेट 6.5 फीसदी है.
आरबीआई की वेट एंड वॉच की रणनीति
अब रिजर्व बैंक के ऊपर रेपो रेट को कम करने का दबाव बढ़ रहा है, ताकि ग्रोथ को सपोर्ट मिल सके. हालांकि महंगाई का रुख अभी भी निश्चित नहीं हुआ है. अन्य ग्लोबल सेंट्रल बैंकों ने भी अभी ब्याज दरें घटाने की शुरुआत नहीं की है.
रेपो रेट से ग्रोथ और महंगाई का कनेक्शन
रेपो रेट को कम करने से होम लोन, पर्सनल लोन और कार लोन समेत तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाते हैं. इससे लोग कर्ज लेकर उपभोग करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं, जो अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाता है और अंतत: आर्थिक वृद्धि दर को तेज करता है. हालांकि इससे महंगाई के बढ़ने का भी खतरा रहता है. महंगाई को काबू करने के लिए आरबीआई इसी कारण रेपो रेट का सहारा लेकर मांग और लिक्विडिटी को नियंत्रित करता है. ऐसा माना जा रहा है कि रेपो रेट के बढ़ने का दौर पीक पर जा चुका है. यानी अब या तो ब्याज दरें कुछ समय के लिए स्थिर रह सकती हैं या जल्दी ही इसमें कमी का दौर वापस आ सकता है.
रिजर्व बैंक ने अपनाया उदार रुख
वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर अशवनी राणा ने रेपो रेट को स्थिर रखने के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ने लगातार चौथी बार रेपो रेट को नहीं बढ़ाकर उदार रुख का परिचय दिया है. सेंट्रल बैंक महंगाई को काबू करने का प्रयास कर रहा है. सेंट्रल बैंक ने एमपीसी में आने वाले त्योहारों का भी ध्यान रखा है. रिजर्व बैंक गवर्नर ने बैंकों की अच्छी स्थिति की भी जानकारी दी और कहा कि इंडिया वर्ल्ड ग्रोथ का इंजन भी बन सकता है.
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