RBI Repo Rate: मॉर्गन स्टैनली के अर्थशास्त्रियों ने कहा, आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती के अब आसार नहीं
RBI Update: मई 2022 के बाद से लेकर फरवरी 2023 के बीच महंगाई दर में तेज उछाल के बाद आरबीआई ने छह मॉनिटरी पॉलिसी बैठकों में अपने रेपो रेट को 4 फीसदी से बढ़ाकर 6.50 फीसदी कर दिया था.
RBI Repo Rate: वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से अपने पॉलिसी रेट्स यानि रेपो रेट में कटौती किए जाने की उम्मीद अब ना के बराबर है. मॉर्गन स्टैनली के अर्थशास्त्रियों ने अपने नोट में ये बातें कही है. पहले इस बात की संभावना जताई जा रही थी खुदरा महंगाई दर के आरबीआई के टोलरेंस बैंड 4 फीसदी पर आने के बाद ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है. पर मॉर्गन स्टैनली ने अपने नोट में कहा है कि ऐसी कोई उम्मीद नहीं है.
मॉर्गन स्टैनली की अर्थशास्त्री उपासना चाचरा और बानी गंभीर ने एक नोट तैयार किया है. अपने नोट में इन अर्थशास्त्रियों ने लिखा, प्रोडक्टिविटी ग्रोथ में सुधार, इंवेस्टमेंट रेट में बढ़ोतरी, महंगाई दर से 4 फीसदी के ऊपर बने रहने के साथ टर्मिनल फेड फंड रेट के ज्यादा होने के चलते उच्च ब्याज दरों की दरकार नजर आ रही है. ऐसे में हमारा मानना है कि 2024 - 2025 में आरबीआई अपने पॉलिसी रेट्स में कोई बदलाव नहीं करेगा और आरबीआई का रेपो रेट 6.5 फीसदी पर बरकरार रहेगा.
अपने नोट में मॉर्गन स्टैनली के अर्थशास्त्रियों ने लिखा कि अमेरिका में पहले जहां जून 2024 में रेट कटौती की संभावना जताई जा रही थी लेकिन पहला रेट कट अब जुलाई 2024 में ही संभव है और 2024 में चार की जगह तीन ब्याज दरों में कटौती की संभावना है. नोट के मुताबिक टर्मिनल फेड फंड रेट के ज्यादा होने और अमेरिकी डॉलर में मजबूती के चलते आरबीआई को सतर्क रहना होगा.
नोट में मॉर्गन स्टैनली की अर्थशास्त्रियों ने कहा कि, हम ये लगातार कहते रहे हैं कि कमोडिटी के दामों में तेजी, फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में कटौती में देरी, मजबूत डॉलर के साथ घरेलू मोर्च पर कैपिटल एक्सपेंडिचर और प्रोडक्टिविटी के चलते ग्रोथ में तेजी के कारण आरबीआई पॉलिसी रेट्स को 6.5 फीसदी पर बरकरार रख सकता है. इन अर्थशास्त्रियों ने कहा कि ग्लोबल और घरेलू कारणों के चलते हमारा मानना है कि आरबीआई की पॉलिसी रेट्स 6.5 फीसदी पर बनी रह सकती है.
दरअसल 2022 में मई के बाद से लेकर फरवरी 2023 तक महंगाई दर में तेज उछाल के बाद आरबीआई ने छह मॉनिटरी पॉलिसी बैठकों में अपने रेपो रेट को 4 फीसदी से बढ़ाकर 6.50 फीसदी कर दिया था जिसके बाद ब्याज दरें बढ़ने के चलते लोगों की ईएमआई महंगी हो गई थी.
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