नई दिल्लीः रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी क्रेडिट पॉलिसी का एलान किया जिसमें रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कटौती की गई है. आम चुनाव शुरू होने से पहले अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिशों के चलते रिजर्व बैंक ने प्रमुख नीतिगत दर रेपो रेट को 0.25 फीसदी घटाकर 6 फीसदी कर दिया. रिजर्व बैंक ने लगातार दूसरी बार रेपो रेट में कटौती की है. इससे बैंकों के धन की लागत कम होगी और वह आगे अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे पायेंगे. आने वाले दिनों में इससे होम लोन, ऑटो लोन और दूसरे कर्ज सस्ते हो सकते हैं.
इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019- 20 के लिये आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.4 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया. हालांकि, केन्द्रीय बैंक ने मानसून की स्थिति को लेकर अनिश्चितता को देखते हुये मौद्रिक नीति रुख को तटस्थ बनाए रखा है.
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति की दूसरी बैठक
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति की दूसरी बैठक में आज समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो रेट में कटौती के पक्ष में अपना मत दिया जबकि दो ने इसे स्थिर बनाये रखने को कहा.
केन्द्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन चली बैठक के बाद बृहस्पतिवार को रेपो रेट को तुरंत प्रभाव से 0.25 फीसदी घटाकर 6 फीसदी कर दिया. इससे पहले रिजर्व बैंक ने फरवरी 2019 में हुई समीक्षा में इसे 6.50 से घटाकर 6.25 फीसदी किया था. इससे पहले अप्रैल 2018 में रेपो रेट छह फीसदी पर थी.
पढ़ें पॉलिसी की बड़ी बातें
चालू वित्त वर्ष की पहली द्वैमासिक मौद्रिक नीति के वक्तव्य में रिजर्व बैंक ने कहा है कि रेपो रेट में की गई कटौती मध्यम अवधि के लक्ष्य के अनुरूप की गई है. इस लक्ष्य में महंगाई को चार फीसदी के दायरे में रखने के साथ साथ आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना है.
उत्पादन फासला निगेटिव-निजी निवेश धीमा
मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा गया है कि उत्पादन फासला निगेटिव बना हुआ है और घरेलू अर्थव्यवस्था के सामने चुनौती बनी हुई है. खासतौर से वैश्विक मोर्चे पर यह चुनौतियां ज्यादा हैं. निजी निवेश को बढ़ावा देकर घरेलू आर्थिक वृद्धि को मजबूती देने की जरूरत है. निजी निवेश अभी भी धीमी गति पर बना हुआ है.
राजकोषीय घाटे पर दबाव और बढ़ सकता है
समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में वैकल्पिक कृषि समर्थन योजनाओं, कुछ राज्य सरकारों द्वारा की गई कृषि कर्ज माफी घोषणाओं और फसलों के लिये ऊंचा न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्यान्नों की खरीदारी के साथ ही कम डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन से सकल राजकोषीय घाटे पर दबाव और बढ़ सकता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि खुदरा मुद्रास्फीति अपने हाल के निम्न स्तर से ऊपर उठ सकती है. अनुकूल आधार प्रभाव खत्म होने के बाद यह बढ़ सकती है हालांकि इसके चार फीसदी के लक्ष्य से नीचे ही रहने की उम्मीद है.
समीक्षा रिपोर्ट में मुद्रास्फीति दायरे के सामने मौजूद जोखिम के बारे में भी बताया गया है. कच्चे तेल के ऊंचे दाम, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में उतार चढाव और जल्द नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों के दाम में अचानक गिरावट आना और वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने में पीछे रह जाना जैसी चुनौतियां बरकरार हैं.
क्या है रेपो रेट-रिवर्स रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे वाणिज्यक बैंकों को अल्पावधि के लिये नकदी उपलब्ध कराता है. इसके साथ ही रिवर्स रेपो रेट भी इसी अनुपात में घटकर 5.75 फीसदी और बैंकों के लिये सीमांत स्थायी सुविधा और बैंक दर को 6.25 फीसदी कर दिया.
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