नई दिल्ली: आज आरबीआई ने जहां क्रेडिट पॉलिसी में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया वहीं आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को भी घटा दिया है. आज रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिये विकास दर के अनुमान को घटाकर 7.3 फीसदी कर दिया. हालांकि, केंद्रीय बैंक ने उम्मीद जताई कि नये नोटों के चलन में आने से खासकर ज्यादा करेंसी वाले क्षेत्रों में कंज्यूमर एक्सपेंडीचर बढ़ेगा.


केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 2016-17 के लिये ग्रॉस वैल्यू एडिशन (जीवीए) 6.6 फीसदी रहने की बात कही गई है जो कि फरवरी 2017 में जारी दूसरे एडवांस्ड एस्टिमेट से 0.1 फीसदी अंक कम है.


खास बात ये भी है कि आरबीआई ने भी माना है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा और मार्च तिमाही में भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के मामले में चीन से पिछड़ गया. चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 6.1 फीसदी रही. इससे 2016-17 में विकास दर 3 साल के न्यूनतम स्तर 7.1 फीसदी पर आ गयी.


आरबीआई ने कहा, ‘‘सीएसओ के 2016-17 के अस्थायी अनुमान को देखते हुए 2017-18 के लिये वास्तविक जीवीए के अनुमान को उसी अनुसार 0.1 फीसदी कम कर 7.3 फीसदी कर दिया गया है. इसके ऊपर या नीचे जाने का जोखिम बराबर-बराबर है.’’ उसने कहा कि हालांकि, नये नोटों के चलन में आना जारी रहने से अर्थव्यवस्था के करेंसी रिलेटेड सेक्टर्स में खर्च बढ़ने की संभावना है. साथ ही नोटबंदी के बाद बैंकों के ब्याज में कमी से घरों में खपत और निवेश मांग दोनों को समर्थन मिलना चाहिए. रिजर्व बैंक ने आगे कहा कि सरकार का खर्च लगातार मजबूत बना हुआ है, इससे अन्य सेक्टर्स में नरमी के असर से निपटने में मदद मिली है.


इसके अनुसार, ‘‘केंद्रीय बजट में किये गये प्रस्तावों के क्रियान्वयन से निजी निवेश आकषिर्त होगा क्योंकि जीएसटी, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता और विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड को समाप्त किये जाने जैसे संरचनात्मक सुधारों से व्यापार माहौल सुधरा है.’’




  • आरबीआई ने बताए ये तथ्य जो डालेंगे देश की इकोनॉमी पर असर

  • रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में खुदरा महंगाई के अनुमान को 2 से 3.5 फीसदी कर दिया है. उसका मानना है कि दूसरी छमाही में रिटेल महंगाई 4.5 फीसदी तक पहुंच सकती है.

  • आरबीआई ने साथ ही चेतावनी भी दी है कि राज्यों के बीच कृषि कर्ज माफी की होड़ बढ़ने से आगे महंगाई का खतरा और बढ़ जाएगा.

  • रिजर्व बैंक ने कहा है कि दलहनों के रिकार्ड उत्पादन और उसके इंपोर्ट के चलते काफी ज्यादा सप्लाई हो गई जिसके चलते दालों की कीमतों में गिरावट आई. इसके चलते भी थोक और रिटेल महंगाई के आंकड़ों पर असर हुआ है.

  • इसमें कहा गया है, ‘‘खुले व्यापार और नीतिगत हस्तक्षेप से कीमतों में कमी पर रोक लग सकती है.’’ रिजर्व बैंक के अनुसार खाद्य और ईंधन को छोड़कर महंगाई में नरमी अस्थायी हो सकती है क्योंकि ग्रामीण मजदूरी में बढ़त और कंज्यूमर डिमांड में मजबूती का रुझान है.


आरबीआई ने घटाया महंगाई का भी अनुमान


आरबीआई ने ये भी कहा कि ‘‘अगर अप्रैल की स्थिति बनी रहती है और कोई सरकार की तरफ से नीतिगत हस्तक्षेप नहीं होता है तो खुदरा मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 2 से 3.5 फीसदी और दूसरी छमाही में 3.5 से 4.5 फीसदी रह सकती है.’’ इससे पहले, रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि पहली छमाही में खुदरा मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी और दूसरी छमाही में 5 फीसदी तक रहेगी.


जीएसटी के बाद होगा सोने की मांग पर असर


आरबीआई के अनुसार सोने का आयात क्वांटिटी के लिहाज में बढ़ा है जिसका शुरूआती कारण मौसमी और त्योहरों की मांग है. जीएसटी आने के बाद इसमें कमी आने की आशंका के चलते सोने का इंपोर्ट बढ़ा है. हालांकि जीएसटी में सोने के ऊपर 3 फीसदी की दर से टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा गया है जो कमोबेश अभी सोने के मौजूदा टैक्स दरों के जैसा ही है तो इसपर ज्यादा अंतर नहीं आएगा.


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