आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) पर महंगाई का दबाव गहराता जा रहा है. नए सदस्यों वाली कमेटी के सामने अब बड़ा सवाल यह है कि ब्याज दरों में कटौती की जाए या नहीं. आज ( बुधवार, 7 अक्टूबर, 2020) से MPC की बैठक शुरू हो गई है. इसमें फैसला लेना है कि रेपो रेट चार फीसदी से कम किया जाए या नहीं. सरकार ने दो दिन पहले आशिमा गोयल, शशांक भिडे और जयंत आर वर्मा को छह सदस्यीय MPC का स्वतंत्र सदस्य बनाया था. MPC का कोरम पूरा न हो पाने की वजह से पिछले दिनों आरबीआई ने इसकी बैठक टाल दी थी. पहले यह बैठक 29, 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को होने वाली थी. नए सदस्यों की नियुक्ति के बाद एमपीसी की बैठक आज से शुरू हो गई. यह 9 अक्टूबर तक चलेगी.
रेपो रेट में कटौती की मांग सुनेगा आरबीआई?
एमपीसी के सामने कठिन चुनौती बढ़ती महंगाई है. पिछल पांच महीनों से खुदरा महंगाई दर छह फीसदी से ऊपर चल रही है, जो आरबीआई के अपर लिमिट से भी ऊपर है. लिहाजा इस बार भी रेपो रेट में किसी कटौती की संभावना नहीं दिखती. पिछली मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान भी रेपो रेट को 4 फीसदी पर ही स्थिर रखा गया था. हालांकि इसे कम किए जाने की मांग की जा रही है. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इसमें और कमी की जानी चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी की जरूरत पूरी की जा सके. उनका मानना है कि कोविड संक्रमण की वजह से आर्थिक गतिविधियों में आई अड़चन के इस दौर में आरबीआई को रेपो रेट में कटौती करनी चाहिए ताकि ब्याज दरों में कमी आ सके और लोन लेने वालों की ईएमआई घटे.
स्टेगफ्लेशन का खतरा
इस वक्त, देश में महंगाई भी बढ़ रही और ग्रोथ भी निगेटिव जोन में चली गई है. इससे अर्थव्यवस्था के स्टेगफ्लेशन में फंसने की आशंका पैदा हो गई है. स्टेगफ्लेशन वह स्थिति होती है, जब महंगाई भी बढ़ती है और ग्रोथ में नहीं होती है. जबकि माना यह जाता है कि महंगाई होगी तो ग्रोथ होना भी लाजिमी है. रुपये के बचाव के लिए भी आरबीआई रेपो रेट में कटौती नहीं करना चाहेगा. अगर केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की इससे रुपये के कमजोर होने की स्थिति पैदा हो सकती है. केयर रेटिंग्स के मुताबिक बहुत संभावना है कि आरबीआई रेट में कटौती न करे लेकिन वह हालात के मुताबिक कदम उठा सकते हैं.
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