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Real Estate Investment: रेडी-टू-मूव या अंडर कंस्ट्रक्शन, यहां पैसे लगाना फायदे का सौदा!

Ready To Move Vs Under Construction: प्रॉपर्टी मार्केट पर छाई सुस्ती अब उतर रही है और लोग इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं. आइए जानते हैं कि बेहतर रिटर्न के लिए कैसी प्रॉपर्टी खरीदी जाए...

Invest For Better Return: रियल एस्टेट एक बड़े वर्ग के लिए निवेश का पसंदीदा विकल्प रहा है. होशियारी से इन्वेस्ट किया जाए तो रियल एस्टेट जबरदस्त कमाई करा सकता है. कोरोना का कहर छंटने के बाद प्रॉपर्टी मार्केट में बूम है. लोगों में घर खरीदने की इच्छा बढ़ने से मकानों की मांग बढ़ी है. ऐसे लोगों की भी अच्छी-खासी संख्या है, जो बेहतर रिटर्न की चाह में रियल एस्टेट में पैसे लगाते हैं. हालांकि लोगों के सामने दुविधा रहती है कि बेहतर रिटर्न के लिए रेडी-टू-मूव या अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट, कहां पैसे लगाना बेहतर रहता है...

रेडी-टू-मूव का यह फायदा

बेजान पड़ी इमारतों और प्रदर्शन करते घर खरीदारों को देखकर 'रेडी-टू-मूव' फ्लैट खरीदना उचित मालूम पड़ता है. आमतौर पर ऐसे फ्लैट रीसेल में बेचे जाते हैं, यानी किसी ने डेवलपर से खरीदा और बाद में उसे बेच दिया. रेडी-टू-मूव यानी बने-बनाए मकान की खूबी ये है कि आप तुरंत शिफ्ट हो सकते हैं. इसमें GST समेत दूसरे चार्जेज नहीं देने पड़ते हैं. अगर आपने होम लोन लिया है तो आपको सिर्फ EMI भरनी पड़ती है.

सस्ते में मिलती है पुरानी प्रॉपर्टी

रेडी-टू-मूव फ्लैट के दाम लोकेशन, कंस्ट्रक्शन क्वालिटी, फ्लैट कितना पुराना है और प्रॉपर्टी बाजार का क्या हाल है, इन जैसी चीजों पर निर्भर करते हैं. इसी आधार पर प्रॉपर्टी की कीमत कम या ज्यादा होती है. रीसेल प्रॉपर्टी सस्ती होने का एक कारण यह भी है कोई भी प्रॉपर्टी जैसे-जैसे पुरानी होती जाती है, उसकी कीमत भी घटती है. जाहिर-सी बात है नए मकान के मुकाबले ठीक उसी तरह के पुराने घर की कॉस्ट कम होगी.

अंडर-कंस्ट्रक्शन का सबसे बड़ा रिस्क

रही बात अंडर-कंस्ट्रक्शन फ्लैट की, तो ऐसी प्रॉपर्टी का सबसे बड़ा जोखिम पजेशन मिलने में होने वाली देरी है. आमतौर पर बिल्डर 3-4 साल में फ्लैट देने का वादा करते हैं और बाद में डिलीवरी में देरी करते हैं. ऐसे मामले भरे पड़े हैं. प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली-NCR में सिर्फ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ही 1.65 लाख फ्लैट फंसे हुए हैं, जिनकी कीमत 1.18 लाख करोड़ रुपये है. इनमें साल 2014 या उससे पहले लॉन्च हुए हाउसिंग प्रोजेक्ट शामिल हैं. वहीं, देश के 7 प्रमुख शहरों में मई 2022 तक 4.48 लाख करोड़ रुपये के करीब 4.8 लाख घर अटके हुए हैं. दिल्ली-NCR में ऐसे मकानों की संख्या 2.40 लाख है.

इस बात का ध्यान रख लें निर्णय

अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में तुरंत पूरा पैसा नहीं देना पड़ता है बल्कि कंस्ट्रक्शन लिंक्ड प्लान के तहत किस्तों में पैसे भर सकते हैं. डेवलपर के गड़बड़ करने पर रेरा में शिकायत कर सकते हैं.  ऐसी प्रॉपर्टी लॉन्च होने के समय कम दाम पर मिल जाती है और जब तक निर्माण पूरा होता है तब तक इलाके में डेवलपमेंट होने से प्रॉपर्टी के दाम बढ़ जाते हैं. इससे निवेश पर अच्छा खासा एप्रिसिएशन यानी बेहतर रिटर्न मिल जाता है. ऐसी प्रॉपर्टीज के पक्ष में एक और यह बात है कि अब अंडर-कंस्ट्रक्शन व रेडी-टू-मूव प्रॉपर्टी की कीमतों के बीच का अंतर घट रहा है. एनारॉक की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 की पहली तिमाही में रेडी-टू-मूव और अंडर कंस्ट्रक्शन घरों की कीमतों में फर्क सिर्फ 3 से 5 फीसदी रह गया. साल 2017 में यह गैप 9 से 12 फीसदी था.

डिस्क्लेमर: (यहां मुहैया जानकारी सिर्फ सूचना हेतु दी जा रही है. यहां बताना जरूरी है कि रियल एस्टेट मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें. ABPLive.com की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहां कभी भी सलाह नहीं दी जाती है.)

ये भी पढ़ें: सरकारी खजाने को लग सकता है झटका, राजस्व संग्रह अनुमान से कम रहने की आशंका

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