रिलायंस-फ्यूचर डील के तहत फ्यूचर ग्रुप अगले 15 साल तक रिटेल कारोबार में प्रवेश नहीं करेगा. किशोर बियानी और उनके परिवार का कोई भी सदस्य अगले 15 साल तक रिटेल कारोबार नहीं कर सकता. दरअसल इस डील में नॉन-कंपीट क्लॉज के तहत ऐसा होगा. इकनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से यह खबर दी है.


बियानी की प्रैक्सिस रिटेल डील का हिस्सा नहीं 


हालांकि इस सौदे में होम रिटेलिंग शामिल नहीं है, क्योंकि रिलायंस की इसमें मौजूदगी नहीं है. यह डील ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों रिटेल बिजनेस पर लागू होगी. बियानी के पास इस वक्त प्रैक्सिस रिटेल है, जिसके देश भर में 48 स्टोर हैं. कंपनी का रेवेन्यू 702 करोड़ रुपये है.लेकिन यह कंपनी इस डील में शामिल नहीं है. ज्यादातर नॉन कंपीट एग्रीमेंट तीन से पांच साल तक प्रभावी रहते हैं लेकिन जो कंपनी खरीद ली गई उस पर वित्तीय दबाव ज्यादा हो तो यह लंबे वक्त तक चलता है.


फ्यूचर के 19 हजार करोड़ का कर्जा चुकाएगी रिलायंस 


फ्यूचर ग्रुप के रिटेल, होलसेल, वेयरहाउसिंग और यूनिटों के अधिग्रहण के सिलसिले में रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड उसके 19 हजार करोड़ के कर्ज और देनदारियों को चुकाएगी. रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड रिलायंस इंडस्ट्रीज की सब्सिडियरी है. बाकी देनदारी को फ्यूचर को खुद चुकानी होगी.  फ्यूचर के चीफ किशोरी बियानी परिवार को अपना निजी कर्ज को ग्रुप में अपने सारे शेयर गिरवी रख कर चुकाना होगा.


अगर बियानी अपने कारोबार पर चढ़े कर्ज और देनदारियों को खुद नहीं चुका पाते हैं तो रिलायंस इसे टेकओवर कर लेगा लेकिन फ्यूचर ग्रुप को रिलायंस के हाथों बिक्री में पहले की कीमत नहीं मिलेगी. इस सौदे की पूरी कीमत 24,713 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं होगी.बहरहाल, फ्यूचर को कर्ज देने वाले बैंक और दूसरे वित्तीय संस्थान रिलायंस के साथ इसका सौदा पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं. जिन्होंने फ्यूचर को कर्ज दिया है, उन्हें पूरी उम्मीद है कि उन्हें अपना पैसा वापस मिल जाएगा


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