महंगाई में इजाफे के बावजूद आरबीआई अपनी अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है. एक्सपर्ट्स का मानना है महंगाई थोड़ी बढ़ी है लेकिन आरबीआई को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए. इस वक्त इकनॉमी को रफ्तार देना जरूरी है इसलिए इसे कम से कम रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती जरूर करना चाहिए.


खुदरा महंगाई दर आरबीआई के दायरे से बाहर 


चार अगस्त से आरबीआई के गवर्नर की अध्यक्षता वाली मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक शुरू होगी. इन हालातों के ध्यान में रखते हुए छह अगस्त को मौद्रिक नीति समीक्षा में वह रेपो रेट में कटौती का ऐलान कर सकती है. इस पहले इकनॉमी की खराब हालत को देखते हुए रिजर्व बैंक ने निर्धारित शेड्यूल से परे जाकर मार्च और मई में बैठकें की थीं और रेपो रेट में कुल मिलाकर 115 बेसिस प्वाइंट की कटौती की थी.इस बीच दाल, अनाज, मांस और मछली जैसी चीजों के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई दर काफी बढ़ गई है. जून में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पर आधारित खुदरा महंगाई 6.09 फीसदी पर पहुंच गई.


एक्सपर्ट्स का मानना है कि रिजर्व बैंक को इस वक्त महंगाई बढ़ने की चिंता नहीं करनी चाहिए. आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार देने के लिए जरूरी है कि वह रेपो रेटो में 25 या 35 बेसिस प्वाइंट की कटौती करे. हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पिछली कई मौद्रिक समीक्षाओं में रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती कर चुका है और वह चाहे तो इस बार इसे जस का तस रह सकता है. उनका कहना है कि रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई दर का टारगेट दो से छह फीसदी तक रखा है. लेकिन अब यह इसके दायरे से बाहर यानी 6.09 फीसदी पर पहुंच चुका है. ऐसे में हो सकता  कि वह खुदरा महंगाई दर के काबू में आने तक सतर्क रवैया अपनाए और रेपो रेट में कमी न करे.


इस बीच, उद्योग संगठनों ने मांग की है कि कोरोना संकट की वजह से कंपनियों पर बोझ बढ़ गया है. लिहाजा आरबीआई को इस समय कंपनियों के लोन री-स्ट्रक्चरिंग पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. हर सेक्टर में लोन रिस्ट्रक्चरिंग की काफी जरूरत है. आरबीआई की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि लोन रिस्ट्रक्चरिंग बैंकों और कर्ज लेने वालों दोनों के लिए जरूरी है.