नई दिल्लीः रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल ने दो टूक शब्दों में कहा है कि कोई भी बैंकिंग रेग्युलेटर ना तो सभी तरह की धोखाधड़ी को पकड़ सकता है औऱ ना ही रोक सकता है. साथ ही सरकारी बैंकों पर वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के दोहरे नियंत्रण ने नियमन में दरार पैदा कर दी है. दूसरी ओर पटेल ने सरकारी बैंकों पर नजर रखने में दिक्कतों को लेकर मौजूदा कानून में खामियों का भी हवाला दिया है.


पटेल का ये बयान ऐसे समय में आया है जब पंजाब नेशनल बैंक के साथ करीब 13 हजार करोड़ रुपये के घोटाले में रिजर्व बैंक पर भी नाकामियों के आरोप लग रहे हैं. आरोप है कि सालों से चल रहे घोटाले पर रिजर्व बैंक की नजर आखिरकार क्यों नहीं पड़ी. इसके साथ ही रिजर्व बैंक की निगरानी करने की क्षमता को लेकर भी सवाल उठ रहे है. हालांकि रिजर्व बैंक ने पहले एक बयान जारी कर 2016 में ही तमाम बैंकों को खतरे के प्रति आगाह किया था, लेकिन अब जाकर उर्जित पटेल ने इस मामले मे अपनी चुप्पी तोड़ी और आलोचकों को जवाब देने की कोशिश की है.


गांधीनगर में गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में पटेल ने कहा, “धोखाधड़ी का खुलासा होने के बाद ये कहना आम है कि रिजर्व बैंक की सुपरविजन टीम इसे पकड़ सकती थी. ये किसी भी घोटाले के बाद कहा जा सकता है, लेकिन किसी भी बैंकिंग रेग्युलेटर के लिए बैकिंग गतिविधियों में हर जगह मौजूद रहकर घोटाले नहीं होने देने की बात संभव ही नहीं है.” पटेल ने आगे कहा कि अगर कोई रेग्लुलेटर ऐसा कर पाता है तो इसका मतलब ये हुआ है कि वो हर कुछ कर सकता है जो बैंक कर सकता है. दूसरे शब्दों में पूरी बैंकिंग गतिविधि को रेग्युलेटर खुद ही अंजाम दे सकता है. ऐसे में जरुरत इस बात की है कि धोखाधड़ी और दूसरी अनियमितताओं को रोकने के लिए तरह-तरह के इंतजाम होने चाहिए और उनकी मार भी कुछ इस तरह की हो जिससे धोखाधड़ी के असर को सीमित किया जा सके.


पीएनबी का नाम लिए बगैर पटेल ने कहा कि साइबर रिस्क के आधार पर मामले की जड़ तक पहुंचने में मदद मिली. उन्होने कहा कि 2016 में तीन-तीन सर्कुलर जारी कर बैंक को खतरा दूर करने को कहा गया है. लेकिन अब पता चला रहा है कि बैंक ने ऐसा नही किया. साफ-साफ निर्देश दिए जाने के बावजूद खतरे को बने रहना दिया. पटेल ने साफ-साफ कहा, “देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक (पंजाब नेशनल बैंक) में ये एक ऑपरेशन फेल्योर था.” अब रिजर्व बैंक पीएनबी के तहत कार्रवाई करेगा, लेकिन परेशानी ये है कि बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट ने सरकारी बैंकों के खिलाफ कार्रवाई करने के अधिकार सीमित कर दिए है.


बैंकिंग नियामक से जुड़े कायदे कानून स्वामित्व तटस्थ नहीं
इस मौके पर पटेल ने सरकारी बैंकों के नियमन मे रिजर्व बैंक की मजबूरियों का विस्तार से जिक्र किया. उन्होंने कहा कि बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट के तहत सभी व्यावसायिक बैंकों के नियमन का जिम्मा रिजर्व बैंक के पास है. इसके साथ ही भारत सरकार, Banking Companies (Acquisition and Transfer of Undertakings) Act, 1970, the Bank Nationalisation Act, 1980 और the State Bank of India Act, 1955 के तहत सरकारी बैकों को नियंत्रित करती है. पटेल कहते हैं


-बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 36 एए (1) सरकारी बैकों पर लागू नहीं होता, लिहाजा रिजर्व बैंक सरकारी बैंकों के निदेशक और प्रबंधन को नही हटा सकता


-सरकारी बैंक कंपनी कानून के तहत बैंकिंग कंपनी नहीं है जिसके चलते उनपर बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 36 एसीए(1) लागू नहीं होता. इसकी वजह से रिजर्व बैंक न केवल सरकारी बैंक बल्कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैक के निदेशक बोर्ड पर काबिज नहीं हो सकता.


-बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 36 10बी(6) के तहत बैंकिंग कंपनी के अध्यक्ष औऱ प्रबंध निदेशक को हटाने का मामला सरकारी बैंकों पर लागू नही होता.


-बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 45 के तहत रिजर्व बैंक सरकारी बैंकों को विलय के लिए बाध्य नहीं कर सकता.


-बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 21 के तहत सरकारी बैंकों को बैंकिंग गतिविधियों के लिए रिजर्व बैक से लाइसेंस लेने की जरुरत नहीं. अब ऐसे में बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 22(4) के तहत रिजर्व बैंक निजी बैंकों का तो लाइसेंस निरस्त कर सकता है, लेकिन सरकारी बैंकों का नहीं.


-बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 39 के तहत रिजर्व बैंक किसी सरकारी बैंकों को खत्म करने का आदेश नहीं दे सकता.