नई दिल्लीः खुदरा महंगाई दर 18 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गयी है. जून के महीने मे ये दर 1.54 रही, जबकि मई में ये 2.18 फीसदी थी. अब मानसून सामान्य होने की वजह से इसमें और गिरावट के आसार है.

सरकार-आरबीआई के बीच समझौते के बाद पहली बार 2% के नीचे महंगाई
सरकार और रिजर्व बैंक के बीच हुए समझौते के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर 2 से 6 फीसदी के बीच रखने का लक्ष्य है. ये सरकार-आरबीआई के बीच हुए समझौते के बाद पहली बार हुआ है. अभी चूंकि ये दर 2 फीसदी से भी नीचे आ गयी है, इसीलिए नीतिगत ब्याज दर यानी घटाने को लेकर दवाब बढ़ेगा. मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 1-2 अगस्त को होने वाली है. उम्मीद की जानी चाहिए कि उस बैठक में नीतिगत ब्याज दर घटाने का रास्ता बनेगा.



खाने-पीने के सामान की खुदरा महंगाई दर घटी
सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, खाने-पीने के सामान की खुदरा महंगाई दर (-)2.12 फीसदी रही जबकि मई में (-)1.03 फीसदी थी. वैसे सरकारी आंकड़ों में खाने-पीने के सामान की खुदरा महंगाई दर में कमी ऐसे समय में देखी जा रही है जब बाजार में कुछ सब्जियों जैसे टमाटर के भाव अचानक से बढ़ गए हैं. फिलहाल, सरकारी आंकड़ों में बताया जा रहा है कि जून के महीने में सब्जियों की खुदरा महंगाई दर (-)16.53 फीसदी रही.

RBI पर रेपो रेट में कमी करने का दबाव बढ़ा
वैसे खुदरा महंगाई दर में कमी ने रिजर्व बैंक गवर्नर की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति पर नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट में कमी करने का दबाव बढ़ा दिया है. अक्टूबर के बाद से समिति ने अभी तक तमाम उम्मीदों के विपरीत नीतिगत ब्याज दर (वो दर जिस पर रिजर्व बैंक बहुत ही थोड़े समय के लिए बैंकों को कर्ज मुहैया कराता है) में कमी नहीं की. इसे लेकर रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तनानती भी देखने को मिली.



अर्थव्यवस्था में स्थिरता का संकेत है ये घटी महंगाई दर
फिलहाल, ताजा दर के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अऱविंद सुब्रमण्यिन की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, दर का ये स्तर ऐतिहासिक है. साथ ही ये इस बात को दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी हुई है. इस तरह की खुदरा महंगाई दर की स्थिति 1999 में देखने को मिली थी और और उसके पहले अगस्त 1978 में. वैसे गौर करने की बात ये है कि दोनों ही समय खुदरा महंगाई दर का स्वरुप, मौजूदा दर के स्वरुप से कुछ अलग था. बयान में रिजर्व बैंक का सीधा-सीधा नाम तो नहीं लिया गया है, लेकिन इशारों-इशारों में जरुर कहा गया है कि इन आंकड़ों का तमाम नीति निर्माता संज्ञान लेंगे.

औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े भी जारी हुए
इस बीच, सांख्यिकी मंत्रालय ने औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े भी जारी किए हैं. मई के महीने में उद्योग के बढ़ने की दर सिर्फ 1.7 फीसदी रही जबकि अप्रैल के महीने मे ये 2.79 फीसदी थी. औद्योगिक उत्पादन में कमी की बड़ी वजह मैन्युफैक्चिरंग और माइनिंग गतिविधियों में कमी है. मैन्युफैक्चरिंग में कमी के मायने अच्छे नहीं, क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग का जैसे-जैसे विस्तार होता है, नौकरियों के ज्यादा मौके बनते हैं. वैसे भी इस सरकार पर लगातार आऱोप लग रहा है कि विकास की रफ्तार भले ही जैसे भी रही हो, लेकिन लोगों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं.

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